Tuesday 25 December 2012

Wednesday 19 December 2012

कांकुड़गाछी महिला मण्डल का 11वां मंगल महोत्सव 6 जनवरी 2012को

RANISATI DADI MANDIR JHUNJHNU, RAJASTHAN

कोलकाता। बजेगी शहनाई, बजेगे ढोल नगारे, नाचेंगे-गायेंगे हजारों नर-नारी झुंझनूं की सेठानी श्री राणीसती दादी जी के 11वां मंगल महोत्सव में। वाह! क्या नजारा होगा अभी से सोचकर तन और मन पुलकित हो जाता है। वैसे हर वर्ष यह नजारा देखने को मिलता है पर इसबार कुछ खास तैयारी चल रही है जिसका दादीजी के भक्तों को वर्षों से इंतजार है। यह बातें चल रही है कांकुड़गाछी महिला मण्डल का 11वां मंगल महोत्सव की  जो गोकुल बैंक्वेट हॉल, लेकटाउन में 6 जनवरी 2013 को धूमधाम से मनाने की तैयारी का सांचा तैयार किया गया है। कार्यक्रम में सीता लोहिया के सान्निध्य में सैकड़ों महिलाओं द्वारा दादीजी का मंगल पाठ का आयोजन होगा। कार्यक्रम के मुख्य आकर्षण होंगे महिला मण्डल के बच्चों द्वारा मंगल पाठ पर आधारित नृत्य नाटिकाएं तथा नारायणी देवी की मुकलावा जो बैण्ड बाजे के साथ साही अंदाज में निकाला जाएगा। इसमें शामिल होने का सौभाग्य गत वर्ष मुझे भी मिला था। कार्यक्रम की जानकारी देते हुए दादीजी के लिए समर्पित श्री नथमल लोहिया ने बताया कि इस 11वें मंगल महोत्सव में भव्य सजे दरबार में श्री राणी सती दादी जी का अलौकिक श़ृंगार, छप्पन भोग, अखण्ड ज्योत और बच्चों द्वारा मंगल पाठ पर आधारित नृत्य नाटिकाएं कार्यक्रम के मुख्य केन्द्र होंगे। इस 11वां मगल महोत्सव को सफल और महामहोत्सव बनाने में प्रदीप रूईया, विजय रूईया, बालकिशन पोद्दार, गोपाल पोद्दार, शिवरतन सराफ, प्रदीप झुनझुनवाला, शिवरतन डालमिया व अन्य कार्यक्रता तन और मन से समर्पित हो गये हैं।

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Gita Jayanti 2012 : इस्कॉन मंदिर मायापुर में गीता जयंती 20 से 23 दिसम्बर तक

Gita Jayanti in Mayapurdham, West Bengal- by Rajesh Mishra

मायापुरधाम। इस्कॉन की ओर से प्रतिवर्ष की भांति इस वर्ष भी नदिया जिले के इस्कॉन मंदिर, मायापुरधाम में गीता जयंती उत्सव महासमारोह के रूप में 20 से 23 दिसम्बर 2012 तक आयोजित किया जायेगा। इस्कॉन के जनसंपर्क अधिकारी भक्त गौरांग दास महाराज ने बताया कि इस अवसर पर संपूर्ण गीता पाठ, शांति यज्ञ, संकीर्तन शोभायात्रा, गीता से सम्बन्धित प्रश्नोंत्तरी, सांस्कृतिक कार्यक्रम एवं गीता विशेषज्ञों द्वारा प्रवचन आयोजित किये जायेंगेे जिसमें हजारों की संख्या में देश विदेश से कृष्ण भक्त एवं इस्कॉन के सदस्य शामिल होने के लिए पहुंच रहे हैं। समारोह के गीता मर्मज्ञों द्वारा व्याख्यान एवं प्रश्नोत्तरी का भी प्रत्येक दिन कार्यक्रम आयोजित होगा।  मालूम रहे कि इसी दिन भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को गीता का उपदेश दिया था तब से इस दिन को गीता जयंती के रूप में पालन किया जाता है।

Gita Jayanti 2012 

On this day (23 December 2012), 5000 years ago, on the battlefield of Kuruksetra, the Supreme Lord delivered the most confidential and topmost knowledge of devotional service to His lotus feet in the form of the Bhagavad-gita to His dearmost devotee Arjuna, and to humanity at large, in order to help all devotees understand the purpose of life and the way to surrender to Him.
gita-yajna is performed at Mayapur while devotees recite verses from Bhagavad-gita. A Gita Book Marathon also takes place and devotees take part in actively distributing Srila Prabhupada’s Bhagavad-gita to visitors. Usually devotees fast till noon, go to the Ganga for Ganga-puja and bath in her holy waters and a Harinama-sankirtana is held in the evening.
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Saturday 15 December 2012

जगन्नाथ धाम

चार बड़े धामों में से एक

पुरी का जगन्नाथ धाम चार बड़े धामों में से एक है। भगवान जगन्नाथ और उनका रथ महोत्सव मिलन, एकता और अखंडता का प्रतीक है।
उड़ीसा में समुद्र तट पर स्थित पुरी में भगवान जगन्नाथ हिंदुओं के प्रमुख देवता हैं। यहां दर्शन के लिए केवल देश ही नहीं विदेशों से भी काफी संख्या में श्रद्धालु आते हैं। रथयात्रा आषाढ़ महीने के द्वितीया से शुरू होती है जो नौ दिनों तक चलती है। रथयात्रा का शाब्दिक अर्थ होता है, रथ में बैठकर घूमना। यह रथयात्रा पूरे देश में खूब उत्साह और उमंग के साथ मनायी जाती है। भगवान जगन्नाथ और उनका रथ महोत्सव मिलन, एकता और अखंडता का प्रतीक है।

धार्मिक विशेषता 

इस रथ को सजाने के लिए एक महीने से लोग कड़ी मेहनत करते हैं। पुरी के इस उत्सव की सबसे महत्वपूर्ण विशेषता यह है कि इस रथ को सभी जातियों के लोग खींचते हैं। पुरी के राजा गजपति सोने के झाड़ू से रथ के मार्ग को साफ करते हैं। पूजा और अन्य धार्मिक विधियां समाप्त होने के बाद सुबह-सुबह यह रथ धीरे-धीरे आगे बढ़ता है। रथ को विभिन्न रंगों और कपड़ों से सजाया जाता है। उनके अलग-अलग नाम भी रखे जाते हैं। भगवान जगन्नाथ के रथ का नाम है नंदी घोष, जो 45।6 फीट ऊंचा होता है। बलराम के रथ का नाम ताल ध्वज, जो 45 फीट ऊंचा होता है और सुभद्राजी के रथ का नाम दर्प दलन है। वह 44।6 फीट ऊंचा होता है। 
नंदी घोष का रंग लाल और पीला, ताल ध्वज का रंग लाल और हरा तथा दर्प दलन का रंग लाल और नीला रखा जाता है। पुरी में देवी सुभद्रा की पूजा होने पर भी उन्हें हिंदू पुराणों में देवी नहीं माना गया है। भगवान विष्णु के अवतार श्रीकृष्ण या जगन्नाथ और श्रीराम की प्रतिमा को रथ में रखा जाता है। इस रथ को बहुत ही भक्तिभाव से श्रद्धालु खींचते हैं। उसे लक्ष्मीजी, राधिकाजी और सीताजी के मंदिर ले जाया जाता है। 

रथ पर जगन्नाथ, बलराम और बहन सुभद्रा

इस दिन भगवान जगन्नाथ, अपने भाई बलराम और बहन सुभद्रा के साथ तीन अलग-अलग रथों पर सवार होकर पुरी के मार्ग पर नगर यात्रा करने निकलते हैं। अंत में उन्हें जगन्नाथ पुरी के गुड़िया मंदिर ले जाया जाता है। ये तीनों आठ दिनों तक यहां आराम करते हैं और नौवें दिन सुबह पूजा करने के बाद वापस मंदिर में आते हैं। रथयात्रा के पहले दिन सभी रथों को मुख्य मार्ग की तरफ उचित क्रम में रखा जाता है।
उल्टारथ वापस लौटने की यात्रा को उड़िया भाषा में बहुदा यात्रा या उल्टा रथ कहा जाता है, जो सुबह शुरू होकर जगन्नाथ मंदिर के सामने पूरी होती है। श्रीकृष्ण, बलराम और सुभद्रा, तीनों को उनके रथ में स्थापित किया जाता है और एकादशी तक उनकी पूजा होती है। उसके बाद उन्हें अपने-अपने स्थान पर मंदिर में विराजमान किया जाता है।

कला-शिल्प का अद्वितीय नमूना

 जगन्नाथ मंदिर, कला और शिल्प जगत में अद्वितीय नमूना है। यह मंदिर 294 फुट ऊंचा है। यहां हर साल नया रथ बनता है, परंतु भगवान की प्रतिमाएं वही रहती हैं। हर साल तीनों रथ लकड़ियों से बनाए जाते हैं, जिसमें लोहे का बिल्कुल प्रयोग नहीं किया जाता है। 
बसंत पंचमी के दिन लकड़ियां इकट्ठा की जाती है और तीज के दिन रथ बनाना शुरू होता है। रथ यात्रा के थोड़े दिन पहले ही उसका निर्माण कार्य पूरा होता है। यहां प्रति वर्ष नया रथ बनता है परंतु 9 से 19 वर्ष में आषाढ़ माह आने पर तीनों मूर्तियां नई बनाई जाती हैं। इस प्रक्रिया को नव कलेवर या नया शरीर भी कहा जाता है।
 पुरानी प्रतिमाओं को मंदिर के अंदर स्थित कोयली वैकुंठ नामक स्थान में जमीन में दबा दिया जाता है। इस समय किया गया कोई भी शुभ कार्य अत्यंत फलदायक माना जाता है।

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स्वागत वर्ष 2013


सम्पादकीय-दिसम्बर-2012

संपादक -संजय अग्रवाल 

देखते ही देखते वर्ष 2012 बीतने वाला है और वर्ष 2013 का आगमन सन्निकट है। सेकेंड, मिनट, घंटा, दिन, सप्ताह, महीना, वर्ष टिक-टिक चलती घड़ी के साथ बीत रहा है। नये वर्ष के स्वागत की परम्परा है लेकिन समझ में नहीं आ रहा है कि- नये वर्ष का स्वागत किस तरह करें। यह तो वही बात हुई कि- ""कैसे मनाऊं दिवाली, हो लाला, अपना निकल रहा दिवाला...''। कमरतोड़ महंगाई से हर कोई त्रस्त है। वैश्विक आर्थिक मंदी की मार साफ दिखाई पड़ रही है। हर चीज के दाम, हर काम के खर्च बढ़ते जा रहे हैं। और बातों को छोड़ दीजिए दैनिक उपयोग, खाने-पीने के सामानों के भाव इतना अधिक हैं कि आम आदमी का गुजर मुश्किल हो रहा है। फिजूलखर्ची रोकने की जरूरत है। शादी-विवाह जैसे कार्यक्रमों में दिखावा, आडम्बर बन्द होने चाहिए। अपने बुजुर्ग जिस सादगी के साथ जीवन-यापन करते थे, उसी राह पर चलने की जरूरत है। सादा जीवन-उच्च विचार वाले हमारे समाज के वरिष्ठ लोगों ने देशभर में अस्पताल, स्कूल, मंदिर, धर्मशालाएं बनवाईं। अपने इन समाजसेवा के कार्यों के कारण जीते जी उन्हें सम्मान तो मिला ही, उनका नाम अमर हो गया। आज भी लोग उनका नाम इज्जत से लेते हैं। आज की पीढ़ी उन लोगों से बहुत अधिक कमा  रही है, लेकिन खर्च सिर्फ अपने लिये किया जा रहा है। नतीजा स्पष्ट है कि समाज जानता ही नहीं इन्हें। आज पुराने अस्पतालों, स्कूलों, धर्मशालाओं का रख-रखाव मुश्किल हो रहा है। नयी बनने के बारे में कहां से सोचा जा सकता है। नया वर्ष इस तरह की तमाम बातों को सोचने पर विवश करता है। आज सोचने की जरूरत है कि हम कहां जा रहे हैं, कहां जाने की जरूरत है। कहीं ऐसा तो नहीं कि हम अंधी दौड़ में शामिल हो गये हैं। नया वर्ष सभी के जीवन को खुशियों से भर दें, सभी स्वस्थ, प्रसन्न और सम्पन्न रहें। प्रभु से यही प्रार्थना है।


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Tuesday 4 December 2012

गौवंश के बगैर व्यर्थ है जीवन




पृथ्वी के अस्तित्व का सीधा संबंध गौवंश से है। इस दैवीय पशु के बिना न जीवन की कल्पना की जा सकती है न और कुछ। व्यक्ति के जन्म से लेकर मृत्यु पर्यन्त होने वाले सभी संस्कारों में गायों की किसी न किसी रूप में भूमिका को सर्वत्र स्वीकारा गया है और इन संस्कारों में गौवंश का योगदान नहीं हो तो मनुष्य का पूरा जीवन ही व्यर्थ माना गया है।
शुचिता और स्वास्थ्य तथा दिव्यत्व और दैवत्व की प्राप्ति कराने तक की यात्रा में कोई मददगार है तो वह है गाय। गाय हमारी माता के रूप में अर्वाचीन काल से पूजनीय और सर्वोपरि रही है जो हमारा संरक्षण और पोषण करती है। तभी हमारी वैदिक, पौराणिक और शास्त्रीय विधियों तथा परम्पराओं में गाय को सर्वाधिक महत्त्व प्रदान किया गया है। गाय की सेवा का तत्क्षण सुफल प्राप्त होता है।
भारतवर्ष अपने आदिकाल में सोने की चिड़िया कहा जाता था। तब गौवंश का बाहुल्य था और भारतवर्ष में घी-दूध की नदियॉं बहा करती थीं। ऋषिकुल और गुरुकुलों से लेकर जनकुलों तक गौवंश के पूजनीय महत्त्व की वजह से ही सुख-शांति और समृद्धि पसरी हुई थी।
अखण्ड भारत की यह सबसे बड़ी विशेषता रही है। उस जमाने में सभी लोग गाय का दूध ही पिया करते थे और इस कारण सभी में मानवीय संस्कारों की जड़ें मजबूत हुआ करती थी पर आज गौदुग्ध को त्यागने का ही परिणाम है कि हमारी बुद्धि मलीन और पैशाचिक होती जा रही है और इसका दुष्प्रभाव आज हमें चारों तरफ प्रत्यक्ष दिख रहा है। गौवंश की जहॉं ज्यादा मौजूदगी रहती है वहॉं दिव्य वातावरण अपने आप आकार पा लेता है और हर किसी को सुकून प्राप्त होता है चाहे वह मनुष्य हो या जानवर। यह बात प्रामाणिक दृष्टि से सिद्ध है कि गाय की उपस्थिति मात्र से आरोग्य, धन-लक्ष्मी और ऐश्वर्य सम्पदा का प्राचुर्य अपने आप होने लगता है। 
जहॉं गौवंश का आदर सम्मान होता है वहॉं समस्याओं, आतंक और भयों का स्थान नहीं होता। एक जमाना था जब भारतवर्ष में गौवंश समृद्धि का प्रतीक हुआ करता था और गायों की संख्या स्टेट्‌स सिम्बोल हुआ करती थी। आज वे लोग भी कहीं दिखने में नहीं आते जिनके पुरखे गौ ब्राह्मण प्रतिपाल. का उद्घोष करते हुए अपनी बलिष्ठ भुजाओं को हवाओं में लहराते थे।
कालान्तर में कलियुग के प्रभाव और पैशाचिक वृत्तियों की बढ़ोतरी की वजह से गौवंश पर खतरा मण्डराने लगा। सच तो यह है कि जिस दिन से भारत में गौवंश पर अत्याचार शुरू हुए हैं तभी हमने अब अपनी अवनति और दासत्व की डगर पा ली है।
आज जो भी समस्याएं हमारे सामने हैं उनका एकमात्र मूल कारण यह है कि गौवंश की स्थितियां भयावह दौर से गुजर रही हैं। गौवंश पर अन्याय और अत्याचार जिन-जिन क्षेत्रों में होता है वहॉं पृथ्वी का कंपन बढ़ने लगता है और भूकंप तथा प्राकृतिक आपदाओं के आघात पर आघात होने लगते हैं। इसी प्रकार इन क्षेत्रों में लोक स्वास्थ्य और दूसरे कारकों पर भी घातक असर सामने आता है।
जिन लोगों के घरों में गाय पाली जाती है वहॉं बीमारियां भी कम होती हैं जबकि दूसरी ओर जिन घरों में श्वान पाले जा रहे हैं वे किसी न किसी रूप में बीमारियों के घर हुआ करते हैं। मनुष्य की जो भी बीमारियां हैं उनमें गौमूत्र, गौघृत, गौ दुग्ध का अचूक प्रभाव सामने आया है। वैज्ञानिक तथ्य यह भी है कि गाय का स्पर्श मात्र कई बीमारियों के दूषित प्रभाव को निष्फल कर देता है। गाय का दूध पीलापन लिये हुए होता है और इसमें स्वर्ण की मात्रा होती है। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि गाय की रीढ़ पर सूर्य की किरणें पड़ती रहने से उसके दूध में स्वर्ण का अंश अपने आप आने लगता है। यह दूध अमृत से भी बढ़कर है। गौवंश की इस सारी महिमा के बावजूद हमारा यह दुर्भाग्य ही है कि शाश्वत सत्य को स्वीकारने की बजाय हम पाश्चात्य श्वान संस्कृति को जीवन में अपना रहे हैं और अब तो हमारा व्यवहार तक श्वानों की तरह होता जा रहा है।
आज गंभीरता से यह स्वीकारना होगा कि गौवंश के प्रति गैर जिम्मेदाराना कृत्यों के लिए हम स्वयं जिम्मेदार हैं। हमारी बुद्धि इतनी मलीन हो चुकी है कि हमें अच्छी बातें समझ में आती ही नहीं, जैसा दुनिया करती है, हम भी नकलची बन्दरों की तरह वैसा ही करने लगते हैं और अंधानुकरण में रमे हुए हैं।
इसी प्रकार जिन आश्रमों और मन्दिरों में गौशालाएं नहीं हैं वहां भगवान नहीं रहा करते, इस बात को भी अच्छी तरह समझ लेना चाहिए। पर कब अक्ल आएगी धर्म को धंधा बनाए बैठे लोेगों को, जो रुपयों-पैसों के लिए धर्म के स्वरूप को ही विकृत करने में जुटे हुए हैं। मन्दिरों में भगवान के नैवेद्य के लिए निर्मित होने वाले पंचामृत में भी गौदुग्ध व घृत ही होना चाहिए।
हम खुद तय करें कि हम धर्म कर रहे हैं या अधर्म। गौ सेवा करें, गायों को बचाएं। गाय हमारी मॉं है। गाय बचेगी तभी आप और हम बचेंगे, देश बचेगा। हे ईश्वर, उन मूर्खों को सद्बुद्धि दें जो गायों पर अत्याचार ढाते हैं, गायों के नाम पर राजनीति करते हैं, और उन्हें भी जो धर्म के नाम पर धंधे चलाकर खोटे-खोटे हवन करा रहे हैं। उन लोगों को भी सद्बुद्धि की जरूरत है जो बड़ी-बड़ी कुर्सियों पर बैठकर उस गाय को भूल गए हैं जिनका दूध पीकर वे आज इस मुकाम तक पहुंचे हैं।

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Manav Seva hi Ishwar Seva hai...

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