Wednesday 6 November 2013

DHARMMARG: आस्था का पर्व है छठ

DHARMMARG: आस्था का पर्व है छठ: छठ पर्व छठ, षष्टी का अपभ्रंश है। कार्तिक मास की अमावस्या को दीवाली मनाने के तुरंत बाद मनाए जाने वाले इस चार दिवसिए व्रत की सबसे कठिन और ...

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DHARMMARG: गोवर्धन पूजा – भगवान श्री कृष्ण की अद्भुत लीला

DHARMMARG: गोवर्धन पूजा – भगवान श्री कृष्ण की अद्भुत लीला: Govardhandhari Krishnamurari कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा को गोवर्धन उत्सव मनाया जाता है । इस दिन अन्न कुट, मार्गपाली आदि उत्...

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DHARMMARG: मोक्ष देती हैं ये सप्तपुरियां

DHARMMARG: मोक्ष देती हैं ये सप्तपुरियां: ये सभी सप्तपुरियां भगवान शिव को बहुत प्रिय और भक्तों के लिए मोक्षदायिनी हैं। श्रावण मास के दौरान यक्ष, किन्नर, देव, मनुष्य और दानव भी इन स...

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DHARMMARG: श्याम चूड़ी बेचने आया

DHARMMARG: श्याम चूड़ी बेचने आया: मनहारी का भेस बनाया, श्याम चूड़ी बेचने आया। छलिया का भेस बनाया, श्याम चूड़ी बेचने आया॥ झोली कंधे धरी, उस में चूड़ी भरी। गलिओं में चोर म...

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DHARMMARG: केरवा जे फरेला घवद से

DHARMMARG: केरवा जे फरेला घवद से: केरवा जे फरेला घवद से ओह पर सुगा मेड़राय उ जे खबरी जनइबो अदिक (सूरज) से सुगा देले जुठियाए उ जे मरबो रे सुगवा धनुक से सुगा गिरे मुरझाय उ ...

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Monday 17 June 2013

ज़िंदगी की धुन पर मौत का नाच

सारी दुनिया बंधी है कालबेलिया के जादू में पर इसके फ़नकार अब भी तलाश रहे अपनी पहचान

धीरे-धीरे रात गहरा रही है। दिन भर खेल-कूदकर बच्चे थक गए हैं पर निंदिया रानी पलकों से दूर हैं। बच्चे जब सोते नहीं, बार-बार शरारतें करते हैं, तब दादी शुरू करती हैं—एक राजकुमारी की कहानी। राजकुमारी, जिससे प्यार करता है राजकुमार। सफेद घोड़े पे आता है, उसे अपने साथ ले जाता है। बच्चे जब तक सपनों में डूब नहीं जाते, `हां...’, `और क्या हुआ...’, `आगे...’ बुदबुदाते हुए, आंखें खोले, टकटकी लगाए सुनते रहते हैं। कमाल है कि दादी की किस्सों वाली पोटली कभी खाली नहीं होती। उसमें से निकलते जाते हैं एक के बाद एक अनूठे, मज़ेदार, अनोखे किस्से। राजकुमारी के बाद जादूगर, जिसकी जान चिड़िया के दिल में कैद है और फिर नाग-नागिन की बातें। हां...डर रहे हैं बच्चे, सिमट रहे हैं खुद में, सट रहे हैं एक-दूसरे से और सुनते ही जा रहे हैं नाग-नागिन के जोड़े के बारे में। उनसे जुड़ी कितनी ही कहानियां...। मन मोह लेती हैं नाग-नागिन की रहस्यमयी कथाएं। इच्छाधारी नागिन का प्रेमी नाग से मिलना, फिर नाग की हत्या, नागिन का बदला और भी पता नहीं क्या-क्या।
जितनी पुरानी दुनिया है, कुदरत है, उतनी ही तो पुरानी हैं नाग-नागिन की कहानियां। उनके किस्से, अफ़साने और हां, उसी तरह प्राचीन हैं सपेरे और उनका संसार।
बीन बजाता संपेरा याद है? उसकी वो पोटली, जिसमें से पूंछ पकड़कर, कभी गर्दन से थामकर संपेरा सांप निकालता है। ओह...ये क्या, कैसा डरावना सांप है, पर संपेरे नहीं डरते। खेलते हैं ज़हरीले सांपों से। वही क्यों...उनके छोटे-छोटे बच्चे तक, जो बोल तक नहीं पाते, फिर भी नाग का मुंह खोलकर उसके दांत गिनने की कोशिश जो करते हैं।
ये हैं संपेरे, जो मौत के सौदागर सांपों को थामकर, उनका नाच दिखाकर रोजी-रोटी की लड़ाई लड़ते हैं। दिन भर सांपों की तलाश करने या फिर घर-घर उनकी नुमाइश कर शाम तक जुटाते हैं दो रोटी लायक थोड़ा-सा पैसा।
ये हालत यूपी-बिहार के ही संपेरों की नहीं, पूरे देश में संपेरे खुद का अस्तित्व बचाने की जद्दोज़हद कर रहे हैं, लेकिन वो हुनर ही क्या, जो गरीबी के अंधेरे में गुम हो जाए। यही वज़ह है कि संपेरों के फ़न की चमक कहीं कम नहीं हुई है।
इसी सिलसिले में एक सवाल पूछ लें आपसे? राजस्थान की घुमक्कड़ जनजाति कालबेलिया का नाम सुना है? वही कालबेलिया, जिसके नृत्य की धमक से सारी दुनिया गुलज़ार हो रही है। काले कपड़े पहनकर जब कालबेलिया समुदाय की लड़कियां तेज़-तेज़ कदमों के साथ लयात्मक नृत्य करती हैं, तो जैसे कुदरत की हर हरकत ठहर जाती है। सासें थमकर सुनती हैं—जादुई धुन, आंखें देखती हैं अनूठे लोकनृत्य की धूम।
रेतीले रेगिस्तान के बीच बसे गांवों में हर दिन गर्मी से झुलसाता है और रातें ठिठुरन से भर जाती हैं। ऐसे में, कहीं, किसी मौके पर सजती है महफ़िल। महफ़िलें जवान होने के लिए किन्हीं खास मौकों का इंतज़ार कहां करती हैं...ऐसे ही धीरे-धीरे सुलगती लकड़ियां चटखती हैं और फिर धीरे-धीरे शोले परवान चढ़ते हैं। फिर उनके सामने आ जाती हैं दो महिलाएं। ये किसी भी उम्र की हो सकती हैं, यूं, ज्यादातर ये युवा ही होती हैं। 
कालबेलिया जनजाति की युवतियां थिरकना शुरू करती हैं और उनके साथ-साथ ढोरों से होती हुई कसक भरी आवाज़ गूंजती है।
सपेरों का ये नाच ग़ज़ब है। कालबेलिया युवतियों की लोच से भरपूर देह बल खाती है और उन्हें देखने वाले सांसें रोककर जिस्म की हर हरकत देखते हैं...सुध-बुध भुलाकर देखते हैं ग़ज़ब का कालबेलिया नाच।
कसीदाकारी की कलाकारी से भरपूर घेरदार काले घाघरे पर लगे कांच में लपटों की झलक दिखती है। इकहरी-पतली लचकदार देह पे सजा होता है खूब घेरदार घाघरा...घेरदार परतों के बीच लाल, नीली, पीली और रूपहले रिबन से सजी गोट और गोल-गोल शीशे।
जिस्म लहराता है, साथ ही हाथ ज़मीन पर टिक जाते हैं। नर्तकी पीछे को झुकती हुई घूम जाती है। जैसे बदन हाड़-मांस से नहीं बना, रबड़ से तैयार किया गया हो। पैर और गर्दन एक लय पर घूमते हैं। मुस्कराती हैं आंखें और होंठ भी साथ-साथ। नैनों की कटार खाकर हर कोई एकसाथ कह उठता है—`आह और वाह’!

'म्हारो अस्सी कली को घाघरो' की तान छेड़ती नर्तकियां क्या हैं। हर चक्कर के साथ जैसे केंचुल छोड़कर जन्म लेती हुई सांप की बेटी, ताज़ा-ताज़ा पैदा हुई नागिन-सी। मोहक, रहस्यमय, धारदार और उल्लास से भरा यौवन। कौन सोचेगा...अभावों में निखरा हुआ सौंदर्य है ये।
रात गुज़रती जाती है पर कालबेलिया की थिरकन कम नहीं होती। ओढ़नी ओढ़े कालबेलिया युवतियां गोल-गोल घेरे में नाचती हैं, फिरकनी की तरह। उनकी रफ्तार में तब-तब बदलाव आता है, जैसे-जैसे राजस्थानी लोकगीतों की सुरलहरियों में उतार-चढ़ाव शामिल होता है। संगीत भी मादक होता है। एक तरफ बीन की मदमाती धुन, दूसरी ओर ढपली का जादू...। लड़कियां नृत्य करती हैं और साज़ पर तैनात होते हैं सपेरे, यानी पुरुष। ये महिला सशक्तीकरण की मिसाल है, जहां पुरुष सहयोगी की मुद्रा में है। वो नेता नहीं, साथी है, सरदार नहीं, सिपाही है।
पुरुष सहयोगी के हाथ बाज़ों पर तड़पते हैं और बिजली कड़कने जैसी ताल के साथ कालबेलिया लड़कियां नाचती जाती हैं। कहीं कोई पास में ही बैठा तान देता है। ये कोई भी हो सकता है, कोई पुरुष या फिर स्त्री। 
कालबेलिया मनोरंजन के लिए किया जाने वाला कोई आम नृत्य नहीं है। थिरकन के इस जादू में छिपा है जीवन का गहरा संदेश...मृत्यु सत्य है। वो आनी ही है। उसका सामना करो।
जैसे, शिव ने संसार की रक्षा के लिए विष पिया। ज़हर को गले में रोकने के लिए नीलकंठ हो गए, वैसे ही तो संपेरन लड़कियां कालबेलिया नृत्य करती हैं। यही बताती हुई—मृत्यु का सामना करना जानो। उनकी मुद्रा बताती है—हम अभाव में जीते हैं, फिर भी ज़िंदगी को ज़हर नहीं समझते।
कालबेलिया घुमक्कड़ जाति है। नगरी-नगरी द्वारे-द्वारे सांप पकड़ने, उनका प्रदर्शन करने के अलावा, और कोई हुनर उनके पास नहीं है। हां, कुछ कालबेलिया आटा पीसने की चक्की और खरल-बट्टा भी बनाते रहे हैं। बीते कुछ साल में ज़रूर उनमें ठहराव आया है, लेकिन रोजमर्रा की ज़रूरतें पूरी करने के लिए अब भी जद्दोज़हद करनी पड़ती है।
राजस्थान की तमाम घुमंतू जातियां पुख्ता पहचान के लिए जूझ रही हैं। ये मूलभूत सुविधाओं के लिए सरकार का मुंह देखते हैं और बस बिसूरते रहने को मज़बूर हैं।
बंजारा, कालबेलिया और खौरूआ जाति के लोगों के पास राशन कार्ड और फोटो पहचान पत्र तक नहीं होते, ऐसे में उन्हें नरेगा जैसी योजनाओं का फायदा नहीं मिल पाता। राजस्व रिकॉर्ड में कालबेलिया के नाम के साथ नाथ या जोगी लिखा जाता है। वो गरीबी रेखा से नीचे के वर्ग में भी शामिल नहीं किए जाते। ऐसी हालत में संपेरे अपने सुनहरे दिनों के आने का कभी ना खत्म होने वाला इंतज़ार ही करते जा रहे हैं।
ये दीगर बात है कि कालबेलिया नृत्य ज़रूर संपेरों के ख्वाबों, ज़िंदगी की यात्रा और सोच को ऊंचाई तक ले जा रहा है। ऐसी ऊंचाई, जिस तक पहुंचने का ख्वाब दुनिया के बड़े-बड़े कलाकार देखते हैं।
इन्हीं संपेरों के बीच की एक लड़की है धनवंती। धनतेरस के दिन जन्मी थी, इसलिए नाम पड़ा धनवंती। बचपन और जवानी दोनों मुफलिसी में गुज़री पर आज के दिन वो धन और शान, दोनों का पर्याय बन गई है। 1985 में हरियाणा की एक पत्रिका ने उसे पहली बार गुलाबो नाम दिया और फिर तो यही नाम कालबेलिया का पर्याय बन गया।
153 देशों में प्रस्तुतियां दे चुकीं गुलाबो को 1991 में राष्ट्रीय पुरस्कार मिला। वो लंदन के अलबर्ट हॉल में परफॉर्म कर चुकी हैं, ब्रिटेन की महारानी एलिजाबेथ तक से सराहना पा चुकी हैं, लेकिन 90 के दशक से पहले वो ख़तरनाक सांपों की खिलाड़न भर थीं। सांप नचाकर लोगों का मनोरंजन करती गुलाबो आज राजस्थानी लोकनृत्य कालबेलिया की पहचान बन गई हैं। देश की सरहदों से पार, परदेस में जगह-जगह कालबेलिया पेश कर वाहवाही हासिल कर चुकी गुलाबो का नाम सम्मान के साथ लिया जाता है। राजस्थान के लोग अपनी संपेरन-जादूगरनी-कलाकार गुलाबो का ज़िक्र बड़ी इज़्ज़त के साथ करते हैं। वो चाहती हैं, इस नृत्य का सम्मान और बढ़े। अपने पिता को याद करते हुए गुलाबो कहती हैं—बापू मुझे समझाते थे, कुछ भी करना पर चोरी की राह पर ना चलना। मेरे लिए जीवन का यही मूलमंत्र है।
गुलाबो और उन जैसी दीवानी नृत्यांगनाओं के ज़रिए कालबेलिया की धमक कहां नहीं पहुंची। मौजूदा साल में भारत ने कॉमनवेल्थ गेम्स की मेजबानी की। खेलों के उद्घाटन समारोह की शान भी कालबेलिया नृत्य ने ही बढ़ाई। गुलाबो के दल का हिस्सा पुष्कर की पांच कालबेलिया नर्तकियां बनीं। उन्होंने सारी दुनिया को एक बार फिर कालबेलिया के सम्मोहन से जकड़ दिया। ये लड़कियां हैं—कुसुमी, मीरा, सुनहरी, रेखा और उनके साथ गुलाबो भी। ये अजमेर के गनाहेड़ा रोड पर न्यू कॉलोनी और देवनगर के बीच के इलाके में झोपड़ों में रहती हैं। 
इन्होंने राष्ट्रमंडल खेलों के उद्घाटन के मौके पर नृत्य का जादू दिखाया। एक तरफ ढपली, झांझरी, रावणहत्था और अलगोजा की धुन थी और दूसरी तरफ कालबेलिया की थिरकन। लोग वाह-वाह कर उठे।
यूं तो राजस्थान का कालबेलिया ने बड़ा नाम किया है, लेकिन इसके कलाकारों की फ़िक्र किसी ने भी नहीं की। साल 2007-08 के बजट में कालबेलिया स्कूल ऑफ डांस की शुरुआत करने की घोषणा की गई थी। इसके लिए एक करोड़ रुपये आवंटित भी किए गए थे पर कई साल गुज़र जाने के बाद भी इस स्कूल की शुरुआत तक नहीं हो सकी है।
संस्थान बनाने के लिए जयपुर के हाथीगांव के पास जयपुर विकास प्राधिकरण ने 1.25 हेक्टेयर ज़मीन का आवंटन किया। चारदीवारी भी बनवाई गई पर अब ये ज़मीन बेकार पड़ी है। 7 करोड़ रुपये के इस प्रोजेक्ट में बाद में कोई राशि जारी नहीं की गई। प्रशासन एक बार फिर सुस्त पड़ा है। किसी को कालबेलिया के उत्थान की फ़िक्र नहीं है। अफ़सोस, जो नृत्य राजस्थानी लोकसंगीत की पहचान है, उसके फ़नकारों की ही कोई पहचान नहीं। कम से कम सरकारी फाइलों में तो वो अब भी अपना वज़ूद तलाश रहे हैं।
कहने की बात नहीं कि कालबेलिया नृत्य का संस्थान बन जाता, तो सरकार की आमदनी बढ़ती और इस फ़न से जुड़े फ़नकारों का नाम भी होता। यही नहीं, इस नृत्य को संरक्षित रखा जा सकता, लेकिन दुर्भाग्यपूर्ण सच यही है कि कालबेलिया की नृत्यशैली और इसके कलाकार अब तक अपना संरक्षक ढूंढ़ रहे हैं, जो सत्ता और सियासत के बीच कहीं खो सा गया है। कबीलाई संस्कृति से निकलकर कालबेलिया नृत्य की चमक बिखेरने वाले युवक-युवतियां चाहते हैं—उनके जीवन में भी थोड़ी-सी रोशनी भर जाए। क्या ऐसा होगा?
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Bachpan, Barish or Chay

बचपन, बारिश और चाय


गरम-गरम सांसों की सरसराहट ने कहा,हाथ में गरम-गरम चाय की एक जोड़ी प्याली उठाओ. चलो, बस चलो, चल दो, लोग सुनें कदमों की आहट. एक जो तुम्हारे पैर हों, दूसरे तुम्हारे साथी के. हम चले, तभी दो बूंदें आसमान से उतरीं, गिरने लगीं तो अधखुली आंखों ने,पलकों ने, गैर-अघाई बाहों ने उन्हें लोक लिया...धीरे-धीरे बारिश बढ़ी, भीगने लगे हम, मन में आग दहकती हुई, पानी पड़ा और उठा धुआं. यादों का ऐसा धुआं, जिनमें कुछ सीलने, सुलगने की महक शामिल है...याद आया बचपन, धुंधलाया पर नए-नकोर बुशर्ट जैसा...चेहरे पर छा गया एक रुमाल, यादों की मीठी महक से महकता हुआ...
बहुत दिन बाद जुर्राबें उतार, पार्क की हरी घास पर नंगे पैर टहलने का दिल किया...दफ्तर का वक्त था, दस्तूर भी न था,फिर भी जूते फेंके टेबल के नीचे, मैं और वो...नहीं तुम नहीं, वो भी नहीं...एक और साथी...पार्क की ओर चल दिए...हम चाय की प्याली लिए पार्क की एक बेंच की दीवाल पर ऊपर उठंगे हुए...साथी से कहा, घास पर चलें पर वो नहीं माना...उसके कपड़े गंदे हो जाते...मैं नीचे आ गया...वहां ढेर सारा पानी था, गंदगी भी रही होगी पर नहीं...घास महक रही थी...पानी भी मुझे अपनी ओर खींच रहा था...मैं एक बड़ा--कमाऊ और जिम्मेदार इंसान नहीं, छोटा सा बच्चा बन गया था...बारिश थम गई है...मैं फिर जुर्राबें पहनकर दफ्तर में आ गया हूं...तुम भी साथ नहीं हो, बस कंप्यूटर है और आठ घंटे की नौकरी...बारिश फिर से आएगी न...मैं भीगूंगा और तुम भी...

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Wednesday 22 May 2013

ढाई सौ साल पुराना है भीमेश्वरी देवी मंदिर



नवरात्र के दिनों में झज्जर स्थित 84 घंटे वाली माता भीमेश्वरी देवी मंदिर की रौनक भी देखते ही बनती है। रोजाना संकीर्तन तो होता ही रहा है, दिल्ली-एनसीआर सहित देश के अन्य हिस्सों से भी यहां खासी संख्या में भक्त पहुंचते रहे हैं। मंदिर की खासियत इसके नाम के अनुरूप छोटे बड़े 84 घंटे ही हैं। मंदिर के पुजारी पंडित शिवओम भारद्वाज बताते हैं कि इस मंदिर की स्थापना लगभग 250 साल पहले हुई थी। मंदिर में स्थापित मां की प्रतिमा भी यहीं पर जमीन के भीतर से निकली थी। पंडित जी के मुताबिक उन के पूर्वज पिछली 10 पीढ़ियों से इस मंदिर की सेवा कर रहे हैं। उन्होंने बताया कि मां की प्रतिमा गोद में उठाए जब भीम इंद्रप्रस्थ से कुरूक्षेत्र के लिए रवाना हुए तो यहां पर उन्होंने थोड़ी देर विश्राम किया था व साथ ही झपकी भी ली थी। किंतु उन्होंने मां की प्रतिमा को गोद में ही रखा जबकि बेरी में भीम ने मां की प्रतिमा को लघुशंका करने के लिए गोद में से नीचे रख दिया था। ऐसे में बेरी में तो मां भीमेश्वरी देवी के रूप में स्थापित ही हो गई, जबकि यहां पर जमीन से प्रतिमा निकलने पर उनका दूसरा मंदिर बना दिया गया।
पंडिताइन संतोष भारद्वाज बताती हैं कि मां ने कुछ भक्तों को स्वप्न में दर्शन देते हुए कहा था कि जब भी मेरे दर्शनों को बेरी आना, झज्जर के मंदिर में भी जरूर जाना। तब से बेरी जाने वाले भक्त यहां भी आने लगे। उन्होंने बताया कि नवरात्र में यहां रोज संकीर्तन होता है तो चौदस को भंडारा किया जाता है। इसके अलावा हर माह की चौदस को जागरण किया जाता है। नवविवाहित दंपति यहां पर अपनी जात लगाने आते हैं तो बच्चों के बाल भी उतारे जाते हैं। सन 1989-90 में पुर्नस्थापित इस मंदिर में नियमित आरती का समय सुबह 6 और शाम के 7 बजे का है। पंडित जी ने यह बताया कि दिल्ली रोड पर झज्जर बस स्टैंड से एक किलो मीटर व बेरी से करीब 13 किलोमीटर पहले माता के इस मंदिर में दिल्ली, कोलकाता, कटक, मुंबई एवं गुवाहाटी से सबसे ज्यादा भक्त आते हैं। पंडित जी मंदिर से जुड़ी एक दिलचस्प घटना यह भी बताते हैं कि जब उनके परदादा मंदिर की सेवा करते थे तो एक बार मां की नथ चोरी हो गई। इस पर उन्होंने इस सोच के साथ पूजा करनी बंद कर दी कि जब मां स्वयं की रक्षा नहीं कर सकती तो हमारी क्या करेगी! लेकिन तीन चार दिनों के भीतर ही कोई अपने आप मां को फिर से नथ पहना गया।

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Tuesday 21 May 2013

अनमोल वचन




हमारी जीभ कतरनी के समान सदा स्वछंद चला करती है। उसे यदि हमने दबा कर काबू कर लिया तो क्रोध आदि बड़े-बड़े अजेय शत्रुओें को बिना प्रयास के ही जीतकर अपने वश मेें कर डाला।
* बालकृष्ण भट्ट 
इंसान को सुनना सीखना चाहिए। इससे उसे यह लाभ होगा कि वह उन लोगोें से भी सीख सकेगा जो बातचीत करना तक नहीं जानते।
* भर्तृहरि 
किसी आदमी की बुराई-भलाई तब तक पता नहीं चलती जब तक वह बातचीत न करे।
* हरिभाऊ उपाध्याय 
सुधारक चाहे कितना भी श्रेष्ठ क्योें न हो, जब तक जनता उसे परख नहीं लेगी, उसकी बात नहीं सुनेगी।
* विनोबा भावे 
जो सुधारक अपने संदेश के अस्वीकार होने पर क्रोधित हो जाता है, उसे सावधानी, प्रतीक्षा और प्रार्थना सीखने के लिए वन मेें चला जाना चाहिए।
* महात्मा गांधी 
सुधार एक दिन मेें नहीं हो जाता, उसके लिए सुधारक को उपहास और विरोध सहने पड़ते हैं।
* प्रेमचंद 
*
यदि लोग अपना अपना सुधार भी कर लेें तो धीरे धीरे पूरा देश सुधर सकता है।
अमृतलाल नागर 

संकलन : राजेश मिश्रा (जगकल्याण समाचार संपादक)


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DHARMMARG: Rameshshwar Dham / रामेश्वरम यात्रा

DHARMMARG: Rameshshwar Dham / रामेश्वरम यात्रा: रामेश्वरम यात्रा : प्रियंका मिश्रा (सुपुत्री तारकेश्वर मिश्रा - संपादक-प्रभात खबर, कोलकाता)  द्वारा विशेष रूप से लिखी गई आलेख है। और वि...

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DHARMMARG: Ram Janma Bhoomi-Babri Masjid reality

DHARMMARG: Ram Janma Bhoomi-Babri Masjid reality: राम जन्म भूमि बनाम बाबरी मस्जिद की सच्चाई अयोध्या में सदियों से चले आ रहे राम जन्म भूमि बनाम बाबरी मस्जिद के ऐतिहासिक विवाद का वर्त...

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DHARMMARG: सबरीमाला में अय्यप्पा स्वामी विराजते हैं

DHARMMARG: सबरीमाला में अय्यप्पा स्वामी विराजते हैं: सरनम अय्यप्पा / Sarnam  Ayyappa - राजेश मिश्रा ये तो आप जानते ही होंगे कि अय्यप्पा स्वामी मंदिर करोड़ों हिंदुओं की आस्था का प्रतीक है...

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Thursday 11 April 2013

सुबह और सोने से पहले बोलें यह हनुमान मंत्र


श्री हनुमान महायोगी और साधक हैं। श्री हनुमान के चरित्र के ये गुण संकल्प, एकाग्रता, ध्यान व साधना के सूत्रों से जीवन के लक्ष्यों को पूरा करने की सीख देते हैं। इस संदेश के साथ कि अगर तन, मन और कर्म को दृढ़संकल्प, नियम और अनुशासन से साध लिया जाए तो फिर कोई भी बड़ा या कठिन लक्ष्य पाना बेहद आसान है।- राजेश मिश्रा 

हर दिन असफलता व निराशा को पीछे धकेल, जीवन से जुड़े नए-नए लक्ष्यों को भेदने के लिए अगर शास्त्रों में बताए श्री हनुमान चरित्र के अलग-अलग 12 स्वरूपों का ध्यान एक खास मंत्र स्तुति से किया जाए तो हर दिन बहुत ही सफल, शुभ व मंगलकारी साबित हो सकता है।

जानिए धर्मग्रंथों में बताई यह खास हनुमान मंत्र स्तुति। इसे मंगलवार, शनिवार या हनुमान उपासना के खास अवसरों के अलावा हर रोज सुबह या रात को सोने से पहले स्मरण करना न चूकें -

हनुमानञ्जनी सूनुर्वायुपुत्रो महाबल:।

रामेष्ट: फाल्गुनसख: पिङ्गाक्षोमितविक्रम:।।

उदधिक्रमणश्चैव सीताशोकविनाशन:।

लक्ष्मणप्राणदाता च दशग्रीवस्य दर्पहा।।

एवं द्वादश नामानि कपीन्द्रस्य महात्मन:।

स्वापकाले प्रबोधे च यात्राकाले च य: पठेत्।।

तस्य सर्वभयं नास्ति रणे च विजयी भवेत्।।


इस खास मंत्र स्तुति में श्री हनुमान के 12 नाम, उनके गुण व शक्तियों को भी उजागर करते हैं । ये नाम है – हनुमान, अञ्जनीसुत, वायुपुत्र, महाबली, रामेष्ट यानी श्रीराम के प्यारे, फाल्गुनसख यानी अर्जुन के साथी, पिङ्गाक्ष यानी भूरे नयन वाले, अमित विक्रम, उदधिक्रमण यानी समुद्र पार करने वाले, सीताशोकविनाशक, लक्ष्मणप्राणदाता और दशग्रीवदर्पहा यानी रावण के दंभ को चूर करने वाले।

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Chaitra Navratri 2013


चैत्र नवरात्रि



इस वर्ष चैत्र नवरात्रि 11 अप्रैल 2013 से प्रारंभ हो रही है। आइये जानते हैं नवरात्रि पूजा विधि- राजेश मिश्रा

नवरात्रि पूजन विधि 

नवरात्रि के प्रत्येक दिन माँ भगवती के एक स्वरुप की पूजा की जाती है। यह क्रम चैत्र शुक्ल प्रतिपदा को प्रातकाल शुरू होता है। प्रतिदिन जल्दी स्नान करके माँ भगवती का ध्यान तथा पूजन करना चाहिए। सर्वप्रथम कलश स्थापना की जाती है।

कलश / घट स्थापना विधि 

सामग्री:
  1. जौ बोने के लिए मिट्टी का पात्र 
  2. जौ बोने के लिए शुद्ध साफ़ की हुई मिटटी 
  3. पात्र में बोने के लिए जौ 
  4. घट स्थापना के लिए मिट्टी का कलश 
  5. कलश में भरने के लिए शुद्ध जल, गंगाजल 
  6. मोली (Sacred Thread)
  7. इत्र 
  8. साबुत सुपारी 
  9. कलश में रखने के लिए कुछ सिक्के 
  10. अशोक या आम के 5 पत्ते 
  11. कलश ढकने के लिए ढक्कन 
  12. ढक्कन में रखने के लिए बिना टूटे चावल 
  13. पानी वाला नारियल 
  14. नारियल पर लपेटने के लिए लाल कपडा 
  15. फूल माला 

विधि 

सबसे पहले जौ बोने के लिए मिट्टी का पात्र लें। इस पात्र में मिट्टी की एक परत बिछाएं। अब एक परत जौ की बिछाएं। इसके ऊपर फिर मिट्टी की एक परत बिछाएं। अब फिर एक परत जौ की बिछाएं। जौ के बीच चारों तरफ बिछाएं ताकि जौ कलश के नीचे न दबे। इसके ऊपर फिर मिट्टी की एक परत बिछाएं। अब कलश के कंठ पर मोली बाँध दें। अब कलश में शुद्ध जल, गंगाजल कंठ तक भर दें। कलश में साबुत सुपारी डालें। कलश में थोडा सा इत्र दाल दें। कलश में कुछ सिक्के रख दें। कलश में अशोक या आम के पांच पत्ते रख दें। अब कलश का मुख ढक्कन से बंद कर दें। ढक्कन में चावल भर दें। नारियल पर लाल कपडा लपेट कर मोली लपेट दें। अब नारियल को कलश पर रखें। अब कलश को उठाकर जौ के पात्र में बीचो बीच रख दें। अब कलश में सभी देवी देवताओं का आवाहन करें। "हे सभी देवी देवता और माँ दुर्गा आप सभी नौ दिनों के लिए इस में पधारें।" अब दीपक जलाकर कलश का पूजन करें। धूपबत्ती कलश को दिखाएं। कलश को माला अर्पित करें। कलश को फल मिठाई अर्पित करें। कलश को इत्र समर्पित करें। 

कलश स्थापना के बाद माँ दुर्गा की चौकी स्थापित की जाती है।
नवरात्री के प्रथम दिन एक लकड़ी की चौकी की स्थापना करनी चाहिए। इसको गंगाजल से पवित्र करके इसके ऊपर सुन्दर लाल वस्त्र बिछाना चाहिए। इसको कलश के दायीं और रखना चाहिए। उसके बाद माँ भगवती की धातु की मूर्ति अथवा नवदुर्गा का फ्रेम किया हुआ फोटो स्थापित करना चाहिए। माँ दुर्गा को लाल चुनरी उड़ानी चाहिए। माँ दुर्गा से प्रार्थना करें "हे माँ दुर्गा आप नौ दिन के लिए इस चौकी में विराजिये।" उसके बाद सबसे पहले माँ को दीपक दिखाइए। उसके बाद धूप, फूलमाला, इत्र समर्पित करें। फल, मिठाई अर्पित करें।

  1. नवरात्रि में नौ दिन मां भगवती का व्रत रखने का तथा प्रतिदिन दुर्गा सप्तशती का पाठ करने का विशेष महत्व है। हर एक मनोकामना पूरी हो जाती है। सभी कष्टों से छुटकारा दिलाता है।
  2. नवरात्री के प्रथम दिन ही अखंड ज्योत जलाई जाती है जो नौ दिन तक जलती रहती है।
  3. नवरात्रि के प्रतिदिन माता रानी को फूलों का हार चढ़ाना चाहिए। प्रतिदिन घी का दीपक जलाकर माँ भगवती को मिष्ठान का भोग लगाना चाहिए। मान भगवती को इत्र/अत्तर विशेष प्रिय है।
  4. नवरात्री के प्रतिदिन कंडे की धूनी जलाकर उसमें घी, हवन सामग्री, बताशा, लौंग का जोड़ा, पान, सुपारी, कपूर, गूगल, इलायची, किसमिस, कमलगट्टा जरूर अर्पित करना चाहिए।
  5. मां दुर्गा को प्रतिदिन विशेष भोग लगाया जाता है। किस दिन किस चीज़ का भोग लगाना है ये हम विस्तार में आगे बताएँगे।
  6. प्रतिदिन कन्याओं का विशेष पूजन किया जाता है। किस दिन क्या सामग्री गिफ्ट देनी चाहिए ये भी आगे बताएँगे।
  7. प्रतिदिन कुछ मन्त्रों का पाठ भी करना चाहिए।

सर्वमंगल मांगल्ये शिवे सर्वार्थ साधिके । शरण्ये त्र्यंबके गौरी नारायणि नमोस्तुते ।।

ऊँ जयन्ती मङ्गलाकाली भद्रकाली कपालिनी ।दुर्गा क्षमा शिवा धात्री स्वाहा स्वधा नमोऽस्तुते ।।

या देवी सर्वभूतेषु शक्तिरूपेण संस्थिता , नमस्तस्यै  नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः
या देवी सर्वभूतेषु मातृरूपेण संस्थिता , नमस्तस्यै  नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः
या देवी सर्वभूतेषु दयारूपेण संस्थिता , नमस्तस्यै  नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः
या देवी सर्वभूतेषु बुद्धिरूपेण संस्थिता , नमस्तस्यै  नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः
या देवी सर्वभूतेषु लक्ष्मीरूपेण संस्थिता , नमस्तस्यै  नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः           
या देवी सर्वभूतेषु तुष्टिरूपेण संस्थिता , नमस्तस्यै  नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः
या देवी सर्वभूतेषु शांतिरूपेण संस्थिता , नमस्तस्यै  नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः
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Wednesday 10 April 2013


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Thursday 21 March 2013

जगकल्याण का होली विशेषांक प्रकाशित

जगकल्याण का होली विशेषांक प्रकाशित हो गया है...
राजस्थान के खाटू श्यामजी, रानिसती दादीजी, सालासर बालाजी, गोविंददेवजी, गंगाराम, बाबा रामदेवजी सहित सभी दर्शनीय और पूजनीय स्थलों के साथ-साथ होली कब और कैसे मनाएं, होलिका दहन का समय का भी उल्लेख किया गया है.। वर्ष भर के पर्व त्यौहार, अमावस, पूर्णिमा के साथ-साथ वर्ष भर की एकादशियाँ, मनभावन चुटकुले, व्यंजन, दद्दू का होली दरबार, होली पर विशेष राशिफल, बच्चों के लिए कहानी-जानकारियां, महिलाओं के लिए विशेष आलेख, धुप में त्वच की देखभाल के साथ-साथ कोलकता एवं दुसरे राज्यों के सभा-संस्थाओं की ख़बरें, श्याम बाबा के भक्तों का मनभावन सन्देश और भी बहुत कुछ…. .. पढने के लिए संपर्क करें... संजय अग्रवाल- 98311 40004

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Wednesday 6 February 2013

विद्या की देवी माता सरस्वती




मॉं सरस्वती हमारे जीवन की जड़ता को दूर करती हैं, सिर्फ हमें उसकी योग्य अर्थ में उपासना करनी चाहिए। सरस्वती का उपासक भोगों का गुलाम नहीं होना चाहिए। वसंत पंचमी के दिन विद्या की देवी सरस्वती के पूजन का भी विधान है।
कलश की स्थापना करके गणेश, सूर्य, विष्णु तथा महादेव की पूजा करने के बाद वीणावादिनी मॉं सरस्वती का पूजन करना चाहिए। सुविधा के लिए मॉं सरस्वती के आराधना स्तोत्र उपलब्ध हैं।
मॉं सरस्वती हमारे जीवन की जड़ता को दूर करती हैं, सिर्फ हमें उसकी योग्य अर्थ में उपासना करनी चाहिए। सरस्वती का उपासक भोगों का गुलाम नहीं होना चाहिए। वसंत पंचमी के दिन विद्या की देवी सरस्वती के पूजन का भी विधान है।    
सरस्वती प्रार्थना
या कुन्देन्दुतुषारहारधवला या शुभ्रवस्त्रावृता
या वीणावरदण्डमण्डितकरा या श्वेतपद्मासना।
या ब्रह्माच्युत शंकरप्रभृतिभिर्देवैः सदा वन्दिता
सा मां पातु सरस्वती भगवती निःशेषजाड्यापहा।।
जो विद्या की देवी भगवती सरस्वती कुन्द के फूल, चंद्रमा, हिमराशि और मोती के हार की तरह धवल वर्ण की हैं और जो श्वेत वस्त्र धारण करती हैं, जिनके हाथ में वीणा-दण्ड शोभायमान है, जिन्होंने श्वेत कमलों पर आसन ग्रहण किया है तथा ब्रह्मा, विष्णु एवं शंकर आदि देवताओं द्वारा जो सदा पूजित हैं, वही संपूर्ण जड़ता और अज्ञान को दूर कर देने वाली मॉं सरस्वती हमारी रक्षा करें1
शुक्लां ब्रह्मविचार सार परमामाद्यां जगद्व्यापिनीं
वीणा-पुस्तक-धारिणीमभयदां जाड्यान्धकारापहाम्‌।
हस्ते स्फटिकमालिकां विदधतीं पद्मासने संस्थिताम्‌
वन्दे तां परमेश्वरीं भगवतीं बुद्धिप्रदां शारदाम्‌।।
शुक्लवर्ण वाली, संपूर्ण चराचर जगत्‌ में व्याप्त, आदिशक्ति, परब्रह्म के विषय में किए गए विचार एवं चिंतन के सार रूप परम उत्कर्ष को धारण करने वाली, सभी भयों से भयदान देने वाली, अज्ञान के अँधेरे को मिटाने वाली, हाथों में वीणा, पुस्तक और स्फटिक की माला धारण करने वाली और पद्मासन पर विराजमान्‌ बुद्धि प्रदान करने वाली, सर्वोच्च ऐश्वर्य से अलंकृत, भगवती शारदा (सरस्वती देवी) की मैं वंदना करता हूँ।
सनातन धर्म की कुछ अपनी विशेषताएं है। इन्हीं विशेषताओं के कारण उसे जगत् में इतनी ऊंची पदवी प्राप्त थी। इसके हर रीति-रिवाज,पर्व,त्योहार और संस्कार में महत्वपूर्ण रहस्य छिपा रहता है, जो हमारे जीवन की किसी न किसी समस्या का समाधान करता है, हमारे मानसिक व आत्मिक विकास का साधन बनता है, शारीरिक व बौद्धिक उन्नति की ओर अग्रसर करता है, विचारों को एक नया मोड़ देता है। हमारे अधिकांश त्योहारों का किसी न किसी देवता की पूजा और उपासना से संबंध है। वसंत पंचमी का त्योहार विशेष रूप से ऋतु परिवर्तन के उपलक्ष्य में एक सामाजिक समारोह के रूप में मनाया जाता है। यह मानसिक उल्लास और आह्लाद के भावों को व्यक्त करने वाला त्योहार है। भारतवर्ष में वसंत का अवसर बहुत ही सुहावना, सौंदर्य का विकास करने वाला और मन की उमंगों में वृद्धि करने वाला माना जाता है। वसंत पंचमी का त्योहार माघ शुक्ल पंचमी को ऋतुराज वसंत के स्वागत के रूप में मनाया जाता है। मनुष्य ही नहीं जड़ और चैतन्य प्रकृति भी इस महोत्सव के लिए इसी समय से नया श्रृंगार करने लग जाती है। वृक्षों और पौधों में पीले, लाल और नवीन पत्ते तथा फूलों में कोमल कलियां दिखलाई पड़ने लगती हैं। आम के वृक्षों का सौरभ चारों ओर बिखरने लगता है। सरसों के फूलों की शोभा धरती को वासंती चुनरियां ओढ़ा देती है। कोयल और भ्रमर भी अपनी मधुर संगीत आरंभ कर देते है। वसंत आगमन के समय जब शीत का अवसान होकर हमारी देह और मन नई शक्ति का अनुभव करने लगते है, हमें अपना ध्यान जीवन के महत्वपूर्ण कार्यो में सफलता प्राप्ति के लिए उपयुक्त रणनीति बनाने के लिए लगाना चाहिए। संभवतया इसी कारण ऋषियों ने वसन्त पंचमी के दिन सरस्वती पूजा की प्रथा चलाई थी।
प्राकटयेन सरस्वत्या वसंत पंचमी तिथौ। 
विद्या जयंती सा तेन लोके सर्वत्र कथ्यते।।
वसंत पंचमी तिथि में भगवती सरस्वती का प्रादुर्भाव होने के कारण संसार में सर्वत्र इसे विद्या जयंती कहा जाता है। सरस्वती विद्या और बुद्धि की अधिष्ठात्री देवी हैं। भगवती सरस्वती के जन्म दिन पर अनेक अनुग्रहों के लिए कृतज्ञता भरा अभिनंदन करे। उनकी कृपा का वरदान प्राप्त होने की पुण्य तिथि हर्षोल्लास से मनाएं यह उचित ही है। दिव्य शक्तियों को मानवी आकृति में चित्रित करके ही उनके प्रति भावनाओं की अभिव्यक्ति संभव है। इसी चेतना विज्ञान को ध्यान में रखते हुए भारतीय त8ववेत्ताओं ने प्रत्येक दिव्य शक्ति को मानुषी आकृति और भाव गरिमा से संजोया है। इनकी पूजा,अर्चन-वंदन, धारणा हमारी चेतना को देवगरिमा के समान ऊंचा उठा देती है। साधना विज्ञान का सारा ढांचा इसी आधार पर खड़ा है।
मॉं सरस्वती के हाथ में पुस्तक ज्ञान का प्रतीक है। यह व्यक्ति की आध्यात्मिक एवं भौतिक प्रगति के लिए स्वाध्याय की अनिवार्यता की प्रेरणा देता है। अपने देश में यह समझा जाता है कि विद्या नौकरी करने के लिए प्राप्त की जानी चाहिए।
यह विचार बहुत ही संकीर्ण है। विद्या मनुष्य के व्यक्तित्व के निखार एवं गौरवपूर्ण विकास के लिए है। पुस्तक के पूजन के साथ-साथ ज्ञान वृद्धि की प्रेरणा ग्रहण करने और उसे इस दिशा में कुछ कदम उठाने का साहस करना चाहिए। स्वाध्याय हमारे दैनिक जीवन का अंग बन जाए, ज्ञान की गरिमा समझने लग जाएं और उसके लिए मन में तीव्र उत्कण्ठा जाग पड़े तो समझना चाहिए कि पूजन की प्रतिक्रिया ने अंत:करण तक प्रवेश पा लिया। कर कमलों में वीणा धारण करने वाली भगवती वाद्य से प्रेरणा प्रदान करती हैं कि हमारी हृदय रूपी वीणा सदैव झंकृत रहनी चाहिए। हाथ में वीणा का अर्थ संगीत, गायन जैसी भावोत्तेजक प्रक्रिया को अपनी प्रसुप्त सरसता सजग करने के लिए प्रयुक्त करना चाहिए। हम कला प्रेमी बनें, कला पारखी बनें, कला के पुजारी और संरक्षक भी। माता की तरह उसका सात्विक पोषण पयपान करे। कुछ भावनाओं के जागरण में उसे संजोये। जो अनाचारी कला के साथ व्यभिचार करने के लिए तुले है, पशु प्रवृत्ति भड़काने और अश्लीलता पैदा करने के लिए लगे है उनका न केवल असहयोग करे बल्कि विरोध, भ्र्त्सना के अतिरिक्त उन्हे असफल बनाने के लिए भी कोई कसर बाकी न रखें। मयूर अर्थात् मधुरभाषी। हमें सरस्वती का अनुग्रह पाने के लिए उनका वाहन मयूर बनना ही चाहिए। मीठा, नम्र, विनीत, सज्जानता, शिष्टता और आत्मीयता युक्त संभाषण हर किसी से करना चाहिए। प्रकृति ने मोर को कलात्मक, सुसज्जिात बनाया है। हमें भी अपनी अभिरुचि परिष्कृत बनानी चाहिए। हम प्रेमी बनें, सौन्दर्य, सुसज्जाता, स्वच्छता का शालीनतायुक्त आकर्षण अपने प्रत्येक उपकरण एवं क्रियाकलाप में बनाए रखें। तभी भगवती सरस्वती हमें अपना पार्षद, वाहन, प्रियपात्र मानेंगी। मॉं सरस्वती की प्रतीक प्रतिमा मूर्ति अथवा तस्वीर के आगे पूजा-अर्चना का सीधा तात्पर्य यह है कि शिक्षा की महत्ता को स्वीकार शिरोधार्य किया जाए। उनको मस्तक झुकाया जाए, अर्थात् मस्तक में उनके लिए स्थान दिया जाए। सरस्वती की कृपा के बिना विश्व का कोई महत्वपूर्ण कार्य सफल नहीं हो सकता। प्राचीनकाल में जब हमारे देशवासी सच्चे हृदय से सरस्वती की उपासना और पूजा करते थे, तो इस देश को जगद्गुरु की पदवी प्राप्त थी। दूर-दूर से लोग यहां सत्य ज्ञान की खोज में आते थे और भारतीय गुरुओं के चरणों में बैठकर विद्या सीखते थे, पर उसके बाद जब यहां के लोगों ने सरस्वती की उपासना छोड़ दी और वे वसंत पर्व को सरस्वती पूजा के बजाय कामदेव की पूजा का त्योहार समझने लगे और उस दिन मदन महोत्सव मानने लगे, तब से विद्या बुद्धि का ह्रास होने लगा और अंत में ऐसा समय भी आया जब यहां के विद्यार्थियों को ही अन्य देशों में जाकर अपने ज्ञान की पूर्ति करनी पड़ी। ज्ञान की देवी भगवती के इस जन्मदिन पर यह अत्यंत आवश्यक है कि हम पर्व से जुड़ी हुई प्रेरणाओं से जन-जन को जोड़ें। विद्या के इस आदि त्योहार पर हम ज्ञान की ओर बढ़ने के लिए नियमित स्वाध्याय के साथ-साथ दूसरों तक शिक्षा का प्रकाश पहुंचाने के लिए संकल्पित हों।
विद्या की अधिकाधिक सब जगह अभिवृद्धि देखकर भगवती सरस्वती प्रसन्न होती है। वसंत का त्योहार हमारे के लिए फूलों की माला लेकर खड़ा है। यह उन्हीं के गले में पहनाई जाएगी जो लोग उसी दिन से पशुता से मनुष्यता, अज्ञान से ज्ञान, अविवेक से विवेक की ओर बढ़ने का दृढ़ संकल्प करते है और जिन्होंने तप, त्याग और अध्यवसाय से इन्हे प्राप्त किया है उनका सम्मान करते है। संसार में ज्ञान गंगा को बहाने के लिए भागीरथ जैसी तप-साधना करने की प्रतिज्ञा करते है। श्रेष्ठता का सम्मान करने वाला भी श्रेष्ठ होता है। इसीलिए आइए हम इस शुभ अवसर पर उत्तम मार्ग का अनुसरण करे।

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Wednesday 9 January 2013

जगकल्याण स्नेह मिलन 2013

कोलकाता। धार्मिक, सामाजिक एवं पारिवारिक समाचार पत्रिका "जगकल्याण' का स्नेह मिलन समारोह-2013 चारों धामों में एक धाम पुरीधाम में 26 एवं 27 जनवरी 2013 को आयोजित होगा। 
श्री विकास व्यास जी के सान्निध्य में आयोजित होने वाले महोत्सव में समारोह स्थल चाणक्य बीएनआर होटल में श्री गणेशजी, श्री नारायण भगवान जी, श्री श्याम दरबार, श्री बाबा गंगाराम जी, श्री वैष्णों देवी जी, श्री सालासर बालाजी, श्री मेहंदीपुर बालाजी, श्री मोहिनी सती दादीजी, श्री गौमाता जी एवं अन्य देवी देवताओं के दरबार सजाये जाएंगे। दरबार के संयोजकगण हैं- सर्वश्री प्रमोद-बरखा अग्रवाल, सांवरमल-सरोज अग्रवाल, राजीव-शशि काबरा, सत्यनारायण-नीलू सरावगी, कालीप्रसाद-बबिता, सलोनी गुप्ता, बिमल -मनोज कुमार अग्रवाल, भवानीशंकर-मंजू मुरारका, शिवप्रकाश-ऊषा, सुशील-शशि परसरामपुरिया, नाथानी परिवार, किशन-लक्ष्मी शर्मा
महोत्सव का उद्‌घाटन करेंगे भुवनेश्वर के उद्योगपति श्री भगतराम गुप्ता, प्रधान अतिथि होंगे ओड़िशा के पर्यटन-सांस्कृतिक विभाग के मंत्री एम. मोहन्ती, समारोह अध्यक्ष श्री रविन्द्र कुमार लडिया, दीप प्रज्ज्वलन श्री प्रदीप-सुनीता अग्रवाल (संघई), ज्योत प्रज्जवलन श्री नवल-ऊषा सुल्तानिया, मुख्य अतिथि श्री भगवान सुपाकर एवं श्री किशन लाल भरतिया, प्रधान वक्ता श्री गणेश कन्दोई होंगे। 
महोत्सव में भव्य दरबारों की झांकिया, सुविख्यात गायक कलाकारों द्वारा भजन अमृतवर्षा, अनाथ बच्चों में पोशाक वितरण, रासलीला एवं नृत्यनाटिकाएं, श्री जगन्नाथ मंदिर में रात्रि श़ृंगार, जगन्नाथजी मंदिर के शिखर पर ध्वजा अर्पण, 108 ब्राह्मण भोजन कार्यक्रम होंगे। महोत्सव के स्थानीय व्यवस्थापक पुरी मंदिर के तीर्थगुरू श्री शंभुनाथ जी खुंटिया होंगे। 
महोत्सव में  भजनों की रसवर्षा करेंगे मुम्बई के बिनोद राठौड़, विश्वास राय, अजीत-मनोज, संतोष शर्मा, अनिल लाटा, रवि बेरीवाल, राधारानी, हरजीत सिंह "हीरा', दलजीत परवाना, कृष्णमूर्ति, सेवासिंह "साहिल', शांतिदेवी राठी, अरुण मित्तल, विशाल कुमार, साहिल शर्मा एवं अन्य कलाकार। श्री नारायण पाण्डेय एवं उनके साथी कलाकार ओड़िशा के लोकप्रिय नृत्य की प्रस्तुति करेंगे। भोपाल के श्री सुरेश राज विशेष आरती नृत्य प्रस्तुत करेंगे। नृत्य नाटिकाएं प्रस्तुत करेंगे रंजीत मल्होत्रा, कुमार दीपक, मयूरी, बंटी-तम्‌शा एवं अन्य कलाकार। होटल चाणक्य बीएनआर के बुकिंग मैनेजर श्री राहुल, श्री जितेन्द्र सिंह एवं होटल नरेन पैलेस के मैनेजर श्री पी.के. सारंगी का भी कार्यक्रम में विशेष सहयोग प्राप्त हो रहा है।


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Monday 7 January 2013

Rashiphal 2013 : वर्ष 2013 में कैसा होगा आपका भविष्य?


क्या नया साल 2013 आपको देगा चमकदार सफलता?

मेष- अश्विनी भरणी और कृतिका नक्षत्र के प्रथम चरण के संयोग से मेष राशि का निर्माण हुआ है। इसके स्वामी मंगल हैं एवं मंगल को सेनानायक का पद प्राप्त है। इस राशि के जातक साहसी, अभिमानी और मित्रों से प्रेम रखने वाले होते हैं। मेष राशि वालों के लिए यह वर्ष धन-प्रॉपर्टी के साथ भौतिक सुख-समृद्धि वाला रहेगा। इस वर्ष कुछ नए लोग जुड़ेंगे एवं अतिव्ययता से परेशानी का सामना करना पड़ेगा। छोटे विचार वालों से बचना होगा। धर्म-पुण्य के कार्य में विघ्न आएंगे। अतिलोभ की वृत्ति उभर कर सामने आएगी। अत: सोच-समझ कर कार्य करें। नौकरी में संकट का सामना करना पड़ेगा। पारिवारिक क्लेश रहेगा। भागीदारी वाले कार्य सावधानी से करें। नाना-मामा पक्ष से संतोष मिलेगा। पेट की परेशानी आ सकती है। स्त्रियों को भी यह वर्ष मनोवांछित फल देगा। कुछ समय पति पक्ष से असंतोष की स्थिति बनेगी। विद्यार्थी, कृषक लाभान्वित होंगे। राजनीति एवं नौकरी वालों के लिए यह वर्ष मध्यम रहेगा। व्यापारी के लिए भी सफल वर्ष रहेगा। इस वर्ष  राहु-केतु ग्रह के जाप एवं शांति पूजन करना चाहिए।
वृषभ- वृषभ राशि कृतिका नक्षत्र के तीन चरण, रोहिणी और मृगाशिरा नक्षत्र के प्रथम और द्वितीय चरणों के संयोग से बनी है। इसका राशि स्वामी शुक्र है। मंत्रीमंडल में इसे मंत्री का पद प्राप्त है। इस राशि का जातक यदि कृष्ण पक्ष में जन्म ले तो उसे दमा इत्यादि होने की संभावना रहती है। इस राशि के जातक स्वभाव से गंभीर और विनम्रशील होते है।  वृषभ राशि वाले जातको के लिए यह वर्ष उमंग, उत्साह वाला रहेगा। परोपकार, वात्सल्य भाव का प्रादुर्भाव होगा। विशिष्ट कार्य सिद्धि के साथ आत्मबल बढेग़ा। वर्ष में शारीरिक कष्ट, दुख के साथ जीवनसाथी से कुछ वियोग के योग बनेंगे। इस वर्ष नि:संतान को संतान प्राप्ति के योग है। जून से अचल सम्पति के प्रति चिंता व नवीन स्थायी काम के योग बनेंगे। सामाजिक व आर्थिक सम्मान में बढ़ोतरी होगी। विद्यार्थी एवं राजनैतिक व्यक्ति को सफलता मिलेगी। व्यापारियों को उतार-चढ़ाव का सामना करना पड़ेगा। वर्ष में शिव आराधना के साथ राहु-केतु की शांति लाभदायक रहेगी।
मिथुन- मिथुन राशि मृगशिरा नक्षत्र के तृतीय-चतुर्थ चरण, आर्द्रा नक्षत्र और पुनर्वसु के तीन चरणों के संयोग से बनी है। मिथुन राशि के स्वामी बुध है। बुध का पद युवराज का है। मिथुन राशि के जातक स्थिर बुद्धि के नहीं होते हैं। विषय में आसक्त होते हैं। प्राय: 30 वर्ष की उम्र के बाद इस राशि वालों का भाग्योदय होता है। बेईमानी से धन कमाना इन्हें रास नहीं आता। सामाजिक प्रतिष्ठा की चाहत हमेशा रहती है। मिथुन राशि वालों के लिए यह वर्ष शुभाशुभ, पीड़ा तथा कर्ज की स्थिति वाला रहेगा। खर्च पर संयम करना पड़ेगा। संबंधियों से उदासीनता प्राप्त होगी। कुटुंब में मतभेद के योग बनते हैं। भूमि-भवन एवं भौतिक साधनों पर अधिक खर्च होगा। पत्नी के स्वास्थ्य की चिंता रहेगी। जून से पुराने कार्य पूर्ण करने का अवसर रहेगा। मन में उत्साह, बल, बुद्धि का परिवर्तन होगा। अच्छे विचार से संतान का सुख प्राप्त होगा। न्यायिक उलझनों से मुक्ति मिलेगी। रोगादि से राहत प्राप्त होगी। विविध कार्य से आर्थिक स्थिति सुधरेगी। व्यापारी, कृषक एवं राजनैतिक सफलता मिलेगी। नौकरी में तकलीफ रहेगी। इस वर्ष गुरु जाप एवं दान-पूजन करने से लाभ मिलेगा।
कर्क- कर्क राशि पुनर्वसु नक्षत्र के चतुर्थ चरण पुष्य और अश्लेषा नक्षत्रों से बनी है। इस राशि के राशि स्वामी चंद्र है। जब सूर्य इस राशि पर जाते है, तो सूर्य उत्तरायन से दक्षिणायन की ओर जाना प्रारंभ करते है। कर्क राशि वाले जातक भावुक, बुद्धिजीवी एवं कठिन से कठिन कार्य को सरलतम करने वाले होते हैं। कर्क राशि वाले मित्रों की राय पर अधिक विश्वास करने वाले होते हैं। इस कारण कभी-कभी इनके साथ धोखा भी होता है। कर्क राशि वालों के लिए इस का वर्ष पूर्वार्द्ध विचित्र, उत्कृष्ट लाभ, मान, यश, पराक्रम, शौर्य, बल-बुद्धि से लाभ वाला रहेगा। परंतु संतान पक्ष से चिंता वाला रहेगा। उच्चाकांक्षा से ऊपर उठकर धर्म-कर्म का ध्यान रखकर काम करना होगा। जिससे गृहस्थ जीवन भौतिक सुख व झगड़े विवाद से मुक्त होगा। शनि की पनौती ढैय्या चल रही है। यह थोड़ी स्वास्थ्य एवं पारिवारिक तकलीफ दे सकता है। अविवाहित के विवाह के योग है। जून से कुछ परिवर्तन होगा। तीर्थयात्रा के लिए कर्ज के योग बनेंगे। कामवासना में वृद्धि होगी। हानि के योग बनेंगे। शुभाशुभ खर्च, बुद्धि में चंचलता रहेगी एवं संतान से दूरी के योग बन सकते हैं। कृषक, व्यापारी को लाभ मिलेगा। इस वर्ष शनि के जाप-पूजन, दान करने से लाभ मिलेगा। 
सिंह- सिंह राशि मघा, पूर्वा-फाल्गुनी और उत्तरा-फाल्गुनी के प्रथम चरण से बनी है। इसके राशि स्वामी सूर्य है। ग्रहमंडल में सिंह राशि राजा के पद पर अधिष्ठित है। इस राशि के जातक अत्यंत उग्र और क्रोधी स्वभाव के साथ स्पष्टवादी भी होते हैं। इस स्वभाव के कारण इस राशि के जातक संघर्षमय जीवन व्यतीत करते हैं। यदि इस राशि वाले जातक के जन्म लग्न के समय सूर्य कमजोर स्थिति में हो तो जातक को जोड़ों का दर्द, पेट और पाचन की तकलीफ रहती है। सिंह राशि वाले जातकों के लिए यह वर्ष मंगलकारी, व्यापार-कारोबार में विस्तार वाला रहेगा। राज्य पक्ष से मान-सम्मान मिलने के योग है। स्थिर मन से काम करना होगा। जानवर एवं वाहन से सावधान रहें। अति स्वाभिमान, क्रोध का त्याग करें। पराक्रम, शौर्य से अनेक प्रकार की सफलता मिलेगी। शत्रु परास्त होंगे। माता पक्ष से ठीक व्यवहार नहीं रहेगा। न्यायिक उलझनों से मुक्ति मिल जाएगी। जून से कुटुंब में असमानता के अलावा शौर्य, पराक्रम, बुद्धि से बंधु एवं मित्रों से लाभ और सुख मिलेगा। शिक्षकों के लिए यह वर्ष श्रेष्ठ रहेगा। राजनीति करने वाले, व्यापारी व कृषक सुखी रहेंगे। इस वर्ष राहु-केतु के जप विशेष लाभदायक रहेंगे।
कन्या- कन्या राशि उत्तरा-फाल्गुनी नक्षत्र के तीन चरण हस्त नक्षत्र और चित्रा नक्षत्र के दो चरणों के योग से बनी है। कन्या राशि का स्वामी बुध है। यह राशि रात्रि में बलवती होती है। कन्या राशि के जातक परिश्रमी, विषयासक्त,विघ्न-बाधाओं पर साधारण रूप से विजय प्राप्त करने वाले होते हैं। कन्या राशि के जातक परिवार के प्रति नि:स्वार्थ समर्पित रहते हैं। कन्या राशि वालों के लिए यह वर्ष श्रेष्ठतम है। 2013 भाग्य-वृद्धि, लाभ प्रतिष्ठा में इच्छित फल देने वाला रहेगा। मनोरथ सिद्ध होने के साथ कोष-खजाने में वृद्धि होगी। स्थायी संपत्ति के योग है। जीवन सुखमय होगा। संगीत कला से सम्मान के योग है। भावुकता में आकर किसी पर अधिक विश्वास नहीं करें अन्यथा धोखा हो सकता है। जून से भूमि-भवन एवं भौतिक सुख में वृद्धि के योग बनते हैं। शत्रु (न्यायिक) से छुटकारा मिलेगा। कृषक, व्यापारी के लिए वर्ष सुखमय रहेगा। नौकरी वालों की पदोन्नति में विलंब होगा। जल एवं वायु यात्रा के योग है। इस वर्ष गुरु आराधना लाभप्रद रहेगी। 
तुला- तुला राशि चित्रा नक्षत्र के दो चरण स्वाति और विशाखा नक्षत्र के तीन चरणों के योग से बनी है। तुला राशि के राशि-स्वामी शुक्र है। यह दिन में बलशाली होती है। तुला राशि के जातक ईमानदार, सत्यप्रिय, न्यायवादी, प्रलोभन से मुक्त एवं त्यागी स्वभाव के होते हैं। परिश्रमी, शांतिप्रिय एवं परिजनों से स्नेहभाव रखने वाले होते हैं।  तुला राशि वालों के लिए यह वर्ष शनि की साढ़ेसाती के दूसरे ढैया वाला रहेगा। यह वर्ष मिश्रित फल वाला रहेगा। सुख-दुख के साथ पूर्वार्द्ध में अपमान, अपयश, संघर्ष जैसी स्थिति कर्ज, खर्च अनायास विषमता का सामना करना पड़ेगा। स्वास्थ्य की तकलीफ हो सकती है। अपनी वाणी पर भी संयम रखें। राजनीति में सोचकर कार्य करें। विरोध का सामना करना पड़ेगा। जून से सुख-शांति कार्यों में उन्नति होने से मन में उत्साह रहेगा। गृहस्थ-जीवन में सुख एवं उन्नति होगी। संतोष की भावना, संकल्प शक्ति मजबूत होगी। विद्यार्थी को शिक्षा में रूकावट आएगी। अत: गणेशजी की आराधना करें। व्यापारी वर्ग सुखी रहेगा। कृषि में मध्यम लाभ मिलेगा। नौकरी वालों को थोड़ी परेशानी का सामना करना पड़ेगा। शनि के जप एवं गुरु आराधना इस वर्ष के लिए लाभदायक रहेगी। 
वृश्चिक- वृश्चिक राशि विशाखा नक्षत्र के एक चरण अनुराधा नक्षत्र और ज्येष्ठा नक्षत्र से बनी है। वृश्चिक राशि का राशि-स्वामी मंगल है। यह रात्रि में बलशाली होकर उत्तर दिशा की स्वामी है। इस राशि के जातक कठोर परिश्रमी, चरित्रवान, ईमानदार, जिद्दी एवं अपनी वाणी पर टिके रहने वाले होते हैं। विपरीत स्थिति को अनुकूल बनाने में चतुर होते हैं, अधिकतर 25 वर्ष की उम्र के बाद ही इनका भाग्योदय होता है। वृश्चिक राशि वालों के लिए यह वर्ष शनि की साढ़ेसाती के प्रथम ढैय्या वाला रहेगा। शुभाशुभ मिश्रित फलवाला, मानसिक तनाव व चिड़चिड़ापन एवं अनेक भूचाल के साथ सफलता मिलने वाला वर्ष रहेगा। महत्वकांक्षा त्याग कर अपने समय अनुसार फल पाकर संतोष रहेगा। असमय अपवाद की स्थिति निर्मित हो सकती है। दोषारोपण की स्थिति भी आ सकती है। शुभ-मंगल कार्य में खर्च होगा। कर्ज की स्थिति से बचें झगडे़ की स्थिति के योग बनते हैं। स्नायु एवं पेट संबंधी तकलीफ हो सकती है। अपना ध्यान रखें। जून से अपने-पराए सभी से असहयोग-कातरता एवं दूरी हो सकती है। विद्यार्थी को विशेष प्रयास करना पड़ेगा। व्यापारी वर्ग को मध्यम लाभ मिलेगा। कृषक को विशेष लाभ मिलेगा। राजनैतिक व्यक्ति अपमानित हो सकते हैं। नौकरी वालों के लिए वर्ष ठीक रहेगा। 
धनु- धनु राशि मूल नक्षत्र पूर्वाषाढ़ा और उत्तराषाढ़ा नक्षत्र के प्रथम चरण से बनी है। धनु राशि के राशि-स्वामी गुरु है। ग्रहमंडल में इसे प्रधानमंत्री का पद प्राप्त है। यह दिन में बलशाली होकर पूर्व दिशा की स्वामी है। धनु राशि वाले जातक सरल स्वभाव वाले, संतोषी एवं हर परिस्थिति से समझौता करने वाले होते हैं। धनु राशि वालों के लिए यह वर्ष मध्यम रहेगा। विपरीत विचार, विसंगति, पतितता, आर्थिक कष्ट भय वाला समय चल रहा है। न्यायिक उलझनें एवं झगडे़-झंझट से बचना होगा। शांति व धैर्य रखकर हर कार्य करें। तीर्थाटन से अचानक लाभ, सुख एवआत्मबल बढेग़ा। नई योजना, भूमि-भवन, वाहन, भौतिक सुख-सुविधा के लिए अतिव्यय या कर्ज की स्थिति बन सकती है। संतान पक्ष से चिंता रहेगी। जून से घर में मांगलिक कार्य के योग बनते हैं। नौकरी में पदोन्नति एवं व्यापार में भी धीरे-धीरे संतोषजनक परिवर्तन आएगा। संसारी वृत्तियों पर अंकुश लगाकर निम्न कोटि के विचारों से बचें एवं पारिवारिक सदस्यों पर ध्यान दें। गृहस्थी में सुख आएगा। विद्यार्थी संभलकर चलें। राजनेता सफल होंगे। कृषक को भी अच्छा लाभ मिलेगा। वर्ष में गुरु, राहु-केतु के जाप पूजन एवं दान से विशेष लाभ मिलेगा। 
मकर- मकर राशि उत्तराषाढ़ा नक्षत्र के तीन चरण श्रवण एवं घनिष्ठा नक्षत्र के दो चरणों से बनी है। मकर राशि पर जब सूर्य आते हैं, तो पवित्र उत्तरायन की ओर अग्रसर हो जाते हैं। मकर राशि के राशि स्वामी शनि है। मकर राशि का बल रात्रि एवं दिशा दक्षिण है। इस राशि के जातक सामाजिक गुण प्रधान होते हैं। यह दूसरों का अहित करने में हिचकिचाते नहीं है। दिल के कठोर एवं जिद्दी होते हैं। वैवाहिक सुखोपभोग के साधन इन्हें सशक्त रूप से प्राप्त होते है। मकर राशि वालों के लिए यह वर्ष श्रेष्ठ विचार, कर्तव्य परायणयुक्त सफलता वाला रहेगा। कर्म-क्षेत्र, घर ग्राम, राज्य सभी जगह मान-सम्मान मिलेगा एवं ख्याति प्राप्त होगी। भौतिक-सुख के साधन बढ़ने से मन में शांति आएगी। आपके माध्यम से कोई विशेष बड़ी योजना प्रारंभ होने के योग बनते हैं। सुख शांति के साथ पुत्र के योग हैं। नि:संतान दम्पति के यहां संतान के योग बनेंगे। इतना सब सुख होते हुए भी एक योग है कि कुछ समय कुटुंब में विग्रह की स्थिति भी बन सकती है। लोभवृत्ति छोड़कर समझदारी से काम लेना होगा। जून माह से वासना के प्रति रूचि में वृद्धि हो सकती है, अत: अपने पर संयम रखना होगा। जबाबदारी वाले काम आएंगे। विद्यार्थी को विशेष प्रयास करने पर सफलता मिलेगी। कृषक, व्यापारी एवं राजनेता लाभ, प्रतिष्ठा पाएंगे। नौकरी में अनुकूलता रहेगी। इस वर्ष नवग्रह के जाप पूजन से विशेष लाभ मिलेगा। 
कुंभ- कुंभ राशि घनिष्ठा नक्षत्र के दो चरण शतभिषा और पूर्वा-भाद्रपदा नक्षत्र के तीन चरणों से बनी है। कुंभ राशि के राशि-स्वामी शनि देव है। यह दिन में बलशाली रहती है एवं इसकी दिशा पश्चिम है। कुंभ राशि के जातक शांत प्रकृतियुक्त, अथक पराक्रमी, दूरदर्शी, चंचल प्रवृति वाले, ओजस्वी, अपने लक्ष्य के प्रति दृढ-संकल्पित और कामी होते है। कुंभ राशि वालों के लिए यह वर्ष सुख-समृद्धि के साथ उन्नति वाला रहेगा। भौतिक सुख, वाहन, भवन के लिए खर्च होगा। जनता से सम्मान वाला समय रहेगा। परंतु परिवार में भाई से मतभेद के योग है। स्वाभिमान की अति, जिद, हठधर्मिता को त्यागने पर अच्छी उन्नति होगी। बड़ा शुभ कार्य आपके द्वारा होने के योग है। राज्य से सम्मान के योग है। भय त्याग कर कार्य करें। जून से संतान सुख मिलेगा। कार्यशीलता में वृद्धि होगी एवं आपका प्रताप बढेग़ा। परिवार से सुख-संतोष की स्थिति बनेगी। तीर्थयात्रा के योग बनेंगे। विद्यार्थी, कृषक, व्यापारी, नेतागण सभी के लिए यह वर्ष उत्तम रहेगा। इस वर्ष गुरु, केतु की आराधना लाभदायक है। 
मीन- मीन राशि पूर्वा-भाद्रपद नक्षत्र के चतुर्थ चरण उत्तरा-भाद्रपदा और रेवती नक्षत्र से बनी है। मीन राशि के राशि-स्वामी गुरु है। यह राशि रात्रि में बलशाली रहती है एवं इसकी दिशा उत्तर है। मीन राशि वाले जातक स्वच्छ-ह्रदय और एकाकी प्रवृति के होते हैं। यह हमेशा लक्ष्मी प्राप्ति के लिए योजनाओं में उलझे रहते हैं। मीन राशि वाले अधिकतर दाम्पत्य जीवन में दुखी रहते हैं। मीन राशि वालों के लिए यह वर्ष शुभ-अशुभ फल वाला रहेगा। पिछले वर्ष की क्षति-पूर्ति होना संभव नहीं लग रहा है। अपने घर के बड़े-बुजुर्गों से सलाह लेकर कार्य करें, क्योंकि भाई-बंधु से असहयोग, क्लेश की स्थिति बन सकती है। धर्म एवं पुण्य-कर्म से मन को शांति मिलेगी। नेत्र तकलीफ के योग बनते हैं। अपने बाहुबल के कारण महत्वाकांक्षा में बढ़ोतरी होगी। ध्यान से कार्य करें। निम्न-कर्म वाले लोगों के संपर्क में आने से रोग-पीड़ा होने के योग बनते हैं। संयम से आगे जीवन चलाएं। मित्र से सामान्य सहयोग मिलेगा। आपको शनि की साढ़ेसाती की पनौती चल रही है। आर्थिक, शारीरिक, पारिवारिक क्लेश किसी भी प्रकार की तकलीफ हो सकती है। जून से किसी मांगलिक कार्य एवं तीर्थ पर खर्च के योग बनेंगे। मनोवांछित फल प्राप्त होने का समय आएगा। विद्यार्थी को सफलता के लिए अधिक मेहनत करना पड़ेगी। कृषक, व्यापारी, राजनेता सभी के लिए मध्यम फल वाला वर्ष रहेगा। नौकरी वालों के लिए सामान्य रहेगा। इस वर्ष शिव एवं हनुमान जी पूजा-अर्चना उपासना लाभदायक रहेगी।


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हिंदू दशनामी संतों की मठ परंपरा




 कुम्भ में स्नान के लिए श्रीपंचायती तपोनिधि, निरंजनी अखाड़ा, श्रीपंचायती आनंद अखाड़ा, श्रीपंचायती दशनाम जूना अखाड़ा, श्रीपंचायती आवाहन अखाड़ा, श्रीपंचायती अग्नि अखाड़ा, श्रीपंचायती महानिर्वाणी अखाड़ा और श्रीपंचायती अटल अखाड़ा वर्षों से भाग लेते रहे हैं। बाद में भक्तिकाल में इन शैव दशनामी अखाड़ों की तरह रामभक्त वैष्णव साधुओं के भी संगठन खड़े हुए। इन्हें अणि का नाम दिया गया। अणि यानि सेना। वैष्णव बैरागी साधुओं ने भी धर्म के संदर्भ में यह अखाड़े गठित किए, जिनमें तीन मुख्य थे। दिगम्बर अखाड़ा, श्रीनिर्वाणी अखाड़ा, श्री निर्मोही अखाड़ा। इनके अंतर्गत अनेक इकाइयां और भी थीं। संन्यासियों और बैरागियों के लिए कुम्भ के स्नान को लेकर भी द्वंद्व का इतिहास रहा है। लेकिन आजकल इनकी संयुक्त समिति गठित होने और सरकार द्वारा मान्यता दिए जाने से संघर्ष की स्थिति खत्म हो गई है। साधुओं की अखाड़ा परंपरा के बाद गुरु नामकदेव के पुत्र श्रीचंद्र द्वारा स्थापित उदासीन संप्रदाय भी श्रीपंचायती अखाड़ा, बड़ा उदासीन एवं श्रीपंचायती अखाड़ा नया उदासीन नाम से सक्रिय हैं।


गोसाईं या बाबाजीयों की दशनामी मठ परंपरा और समाज का प्रचलन शंकराचार्य के समय से चला आ रहा है। शंकराचार्य ने ही उक्त समाजों की स्थापनी की थी। उन्होंने ही देश के चार कोनों में चार मठ स्थापित किए। बाद में दशनामियों के दस संप्रदाय की शुरुआत हुई। उक्त संप्रदाय में हिंदुओं की सभी जाति के लोग शामिल हुए। यह जातिबंधन तोड़ने की शायद सबसे पुरानी कोशिश थी।
मठ की स्थापना के बाद दशनामियों ने 200 वर्षों बाद मठिकाओं की स्थापना की। इन्हें बाद में मढ़ी भी कहा गया। यह मढ़ियां संख्या में 52 थीं। 27 मढ़ियां भारतीयों की, चार मढ़ियां वनों की और एक मढ़ी लताओं की कहलाती है। पर्वत, सागर और सरस्वती पदधारियों की कोई मढ़ी नहीं है। बावन मढ़ियों के अंतर्गत यह सारी संन्यास परंपरा समाजसेवा के लिए भी सक्रिय हैं। बाद में इनमें भी दंढी और गोसाई के दो भेद हुए। तीर्थ आश्रम सरस्वती एवं भारती नामधारी संन्यासी दंडी कहलाए। शेष गोसाइयों में गिने गए। बाद में इन्हीं दशनामी संन्यासियों के अनेक अखाड़े प्रसिद्ध हुए जिनमें से सात पंचायती अखाड़े आज भी सक्रिय हैं। कुम्भ में स्नान के लिए श्रीपंचायती तपोनिधि, निरंजनी अखाड़ा, श्रीपंचायती आनंद अखाड़ा, श्रीपंचायती दशनाम जूना अखाड़ा, श्रीपंचायती आवाहन अखाड़ा, श्रीपंचायती अग्नि अखाड़ा, श्रीपंचायती महानिर्वाणी अखाड़ा और श्रीपंचायती अटल अखाड़ा वर्षों से भाग लेते रहे हैं। बाद में भक्तिकाल में इन शैव दशनामी अखाड़ों की तरह रामभक्त वैष्णव साधुओं के भी संगठन खड़े हुए। इन्हें अणि का नाम दिया गया। अणि यानि सेना। वैष्णव बैरागी साधुओं ने भी धर्म के संदर्भ में यह अखाड़े गठित किए, जिनमें तीन मुख्य थे। दिगम्बर अखाड़ा, श्रीनिर्वाणी अखाड़ा, श्री निर्मोही अखाड़ा। इनके अंतर्गत अनेक इकाइयां और भी थीं। संन्यासियों और बैरागियों के लिए कुम्भ के स्नान को लेकर भी द्वंद्व का इतिहास रहा है। लेकिन आजकल इनकी संयुक्त समिति गठित होने और सरकार द्वारा मान्यता दिए जाने से संघर्ष की स्थिति खत्म हो गई है। साधुओं की अखाड़ा परंपरा के बाद गुरु नामकदेव के पुत्र श्रीचंद्र द्वारा स्थापित उदासीन संप्रदाय भी श्रीपंचायती अखाड़ा, बड़ा उदासीन एवं श्रीपंचायती अखाड़ा नया उदासीन नाम से सक्रिय हैं।
पिछली शताब्दी में सिख साधुओं के नए संप्रदाय निर्मल संप्रदाय और उसके अधीन श्रीपंचायती निर्मल अखाड़ा भी अस्तित्व में आया। इन सभी अखाड़ों के लिए कुम्भ इस कारण भी महत्वपूर्ण है क्योंकि इनके चुनाव व नई कार्यकारिणियों का इस दौरान गठन करने की परंपरा चली आ रही है।
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Jagkalyan Sneh Milan 2013


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Friday 4 January 2013

Jagkalyan Sneh Milan 2013

जगकल्याण पत्रिका परिवार द्वारा आयोजित स्नेह मिलन 2013 में आप सभी सादर आमंत्रित हैं. सुझाव एवं सहयोग के लिए 8981633033  पर संपर्क करें.... 




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Manav Seva hi Ishwar Seva hai...

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