सम्पादकीय-दिसम्बर-2012
संपादक -संजय अग्रवाल |
देखते ही देखते वर्ष 2012 बीतने वाला है और वर्ष 2013 का आगमन सन्निकट है। सेकेंड, मिनट, घंटा, दिन, सप्ताह, महीना, वर्ष टिक-टिक चलती घड़ी के साथ बीत रहा है। नये वर्ष के स्वागत की परम्परा है लेकिन समझ में नहीं आ रहा है कि- नये वर्ष का स्वागत किस तरह करें। यह तो वही बात हुई कि- ""कैसे मनाऊं दिवाली, हो लाला, अपना निकल रहा दिवाला...''। कमरतोड़ महंगाई से हर कोई त्रस्त है। वैश्विक आर्थिक मंदी की मार साफ दिखाई पड़ रही है। हर चीज के दाम, हर काम के खर्च बढ़ते जा रहे हैं। और बातों को छोड़ दीजिए दैनिक उपयोग, खाने-पीने के सामानों के भाव इतना अधिक हैं कि आम आदमी का गुजर मुश्किल हो रहा है। फिजूलखर्ची रोकने की जरूरत है। शादी-विवाह जैसे कार्यक्रमों में दिखावा, आडम्बर बन्द होने चाहिए। अपने बुजुर्ग जिस सादगी के साथ जीवन-यापन करते थे, उसी राह पर चलने की जरूरत है। सादा जीवन-उच्च विचार वाले हमारे समाज के वरिष्ठ लोगों ने देशभर में अस्पताल, स्कूल, मंदिर, धर्मशालाएं बनवाईं। अपने इन समाजसेवा के कार्यों के कारण जीते जी उन्हें सम्मान तो मिला ही, उनका नाम अमर हो गया। आज भी लोग उनका नाम इज्जत से लेते हैं। आज की पीढ़ी उन लोगों से बहुत अधिक कमा रही है, लेकिन खर्च सिर्फ अपने लिये किया जा रहा है। नतीजा स्पष्ट है कि समाज जानता ही नहीं इन्हें। आज पुराने अस्पतालों, स्कूलों, धर्मशालाओं का रख-रखाव मुश्किल हो रहा है। नयी बनने के बारे में कहां से सोचा जा सकता है। नया वर्ष इस तरह की तमाम बातों को सोचने पर विवश करता है। आज सोचने की जरूरत है कि हम कहां जा रहे हैं, कहां जाने की जरूरत है। कहीं ऐसा तो नहीं कि हम अंधी दौड़ में शामिल हो गये हैं। नया वर्ष सभी के जीवन को खुशियों से भर दें, सभी स्वस्थ, प्रसन्न और सम्पन्न रहें। प्रभु से यही प्रार्थना है।
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