Tuesday 25 December 2012

Wednesday 19 December 2012

कांकुड़गाछी महिला मण्डल का 11वां मंगल महोत्सव 6 जनवरी 2012को

RANISATI DADI MANDIR JHUNJHNU, RAJASTHAN

कोलकाता। बजेगी शहनाई, बजेगे ढोल नगारे, नाचेंगे-गायेंगे हजारों नर-नारी झुंझनूं की सेठानी श्री राणीसती दादी जी के 11वां मंगल महोत्सव में। वाह! क्या नजारा होगा अभी से सोचकर तन और मन पुलकित हो जाता है। वैसे हर वर्ष यह नजारा देखने को मिलता है पर इसबार कुछ खास तैयारी चल रही है जिसका दादीजी के भक्तों को वर्षों से इंतजार है। यह बातें चल रही है कांकुड़गाछी महिला मण्डल का 11वां मंगल महोत्सव की  जो गोकुल बैंक्वेट हॉल, लेकटाउन में 6 जनवरी 2013 को धूमधाम से मनाने की तैयारी का सांचा तैयार किया गया है। कार्यक्रम में सीता लोहिया के सान्निध्य में सैकड़ों महिलाओं द्वारा दादीजी का मंगल पाठ का आयोजन होगा। कार्यक्रम के मुख्य आकर्षण होंगे महिला मण्डल के बच्चों द्वारा मंगल पाठ पर आधारित नृत्य नाटिकाएं तथा नारायणी देवी की मुकलावा जो बैण्ड बाजे के साथ साही अंदाज में निकाला जाएगा। इसमें शामिल होने का सौभाग्य गत वर्ष मुझे भी मिला था। कार्यक्रम की जानकारी देते हुए दादीजी के लिए समर्पित श्री नथमल लोहिया ने बताया कि इस 11वें मंगल महोत्सव में भव्य सजे दरबार में श्री राणी सती दादी जी का अलौकिक श़ृंगार, छप्पन भोग, अखण्ड ज्योत और बच्चों द्वारा मंगल पाठ पर आधारित नृत्य नाटिकाएं कार्यक्रम के मुख्य केन्द्र होंगे। इस 11वां मगल महोत्सव को सफल और महामहोत्सव बनाने में प्रदीप रूईया, विजय रूईया, बालकिशन पोद्दार, गोपाल पोद्दार, शिवरतन सराफ, प्रदीप झुनझुनवाला, शिवरतन डालमिया व अन्य कार्यक्रता तन और मन से समर्पित हो गये हैं।

Email us at - jagkalyannews@gmail.com for NEWS/MEMBERSHIP/ADVERTISEMENTS/PHOTOS

Gita Jayanti 2012 : इस्कॉन मंदिर मायापुर में गीता जयंती 20 से 23 दिसम्बर तक

Gita Jayanti in Mayapurdham, West Bengal- by Rajesh Mishra

मायापुरधाम। इस्कॉन की ओर से प्रतिवर्ष की भांति इस वर्ष भी नदिया जिले के इस्कॉन मंदिर, मायापुरधाम में गीता जयंती उत्सव महासमारोह के रूप में 20 से 23 दिसम्बर 2012 तक आयोजित किया जायेगा। इस्कॉन के जनसंपर्क अधिकारी भक्त गौरांग दास महाराज ने बताया कि इस अवसर पर संपूर्ण गीता पाठ, शांति यज्ञ, संकीर्तन शोभायात्रा, गीता से सम्बन्धित प्रश्नोंत्तरी, सांस्कृतिक कार्यक्रम एवं गीता विशेषज्ञों द्वारा प्रवचन आयोजित किये जायेंगेे जिसमें हजारों की संख्या में देश विदेश से कृष्ण भक्त एवं इस्कॉन के सदस्य शामिल होने के लिए पहुंच रहे हैं। समारोह के गीता मर्मज्ञों द्वारा व्याख्यान एवं प्रश्नोत्तरी का भी प्रत्येक दिन कार्यक्रम आयोजित होगा।  मालूम रहे कि इसी दिन भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को गीता का उपदेश दिया था तब से इस दिन को गीता जयंती के रूप में पालन किया जाता है।

Gita Jayanti 2012 

On this day (23 December 2012), 5000 years ago, on the battlefield of Kuruksetra, the Supreme Lord delivered the most confidential and topmost knowledge of devotional service to His lotus feet in the form of the Bhagavad-gita to His dearmost devotee Arjuna, and to humanity at large, in order to help all devotees understand the purpose of life and the way to surrender to Him.
gita-yajna is performed at Mayapur while devotees recite verses from Bhagavad-gita. A Gita Book Marathon also takes place and devotees take part in actively distributing Srila Prabhupada’s Bhagavad-gita to visitors. Usually devotees fast till noon, go to the Ganga for Ganga-puja and bath in her holy waters and a Harinama-sankirtana is held in the evening.
Email us at - jagkalyannews@gmail.com for NEWS/MEMBERSHIP/ADVERTISEMENTS/PHOTOS

Saturday 15 December 2012

जगन्नाथ धाम

चार बड़े धामों में से एक

पुरी का जगन्नाथ धाम चार बड़े धामों में से एक है। भगवान जगन्नाथ और उनका रथ महोत्सव मिलन, एकता और अखंडता का प्रतीक है।
उड़ीसा में समुद्र तट पर स्थित पुरी में भगवान जगन्नाथ हिंदुओं के प्रमुख देवता हैं। यहां दर्शन के लिए केवल देश ही नहीं विदेशों से भी काफी संख्या में श्रद्धालु आते हैं। रथयात्रा आषाढ़ महीने के द्वितीया से शुरू होती है जो नौ दिनों तक चलती है। रथयात्रा का शाब्दिक अर्थ होता है, रथ में बैठकर घूमना। यह रथयात्रा पूरे देश में खूब उत्साह और उमंग के साथ मनायी जाती है। भगवान जगन्नाथ और उनका रथ महोत्सव मिलन, एकता और अखंडता का प्रतीक है।

धार्मिक विशेषता 

इस रथ को सजाने के लिए एक महीने से लोग कड़ी मेहनत करते हैं। पुरी के इस उत्सव की सबसे महत्वपूर्ण विशेषता यह है कि इस रथ को सभी जातियों के लोग खींचते हैं। पुरी के राजा गजपति सोने के झाड़ू से रथ के मार्ग को साफ करते हैं। पूजा और अन्य धार्मिक विधियां समाप्त होने के बाद सुबह-सुबह यह रथ धीरे-धीरे आगे बढ़ता है। रथ को विभिन्न रंगों और कपड़ों से सजाया जाता है। उनके अलग-अलग नाम भी रखे जाते हैं। भगवान जगन्नाथ के रथ का नाम है नंदी घोष, जो 45।6 फीट ऊंचा होता है। बलराम के रथ का नाम ताल ध्वज, जो 45 फीट ऊंचा होता है और सुभद्राजी के रथ का नाम दर्प दलन है। वह 44।6 फीट ऊंचा होता है। 
नंदी घोष का रंग लाल और पीला, ताल ध्वज का रंग लाल और हरा तथा दर्प दलन का रंग लाल और नीला रखा जाता है। पुरी में देवी सुभद्रा की पूजा होने पर भी उन्हें हिंदू पुराणों में देवी नहीं माना गया है। भगवान विष्णु के अवतार श्रीकृष्ण या जगन्नाथ और श्रीराम की प्रतिमा को रथ में रखा जाता है। इस रथ को बहुत ही भक्तिभाव से श्रद्धालु खींचते हैं। उसे लक्ष्मीजी, राधिकाजी और सीताजी के मंदिर ले जाया जाता है। 

रथ पर जगन्नाथ, बलराम और बहन सुभद्रा

इस दिन भगवान जगन्नाथ, अपने भाई बलराम और बहन सुभद्रा के साथ तीन अलग-अलग रथों पर सवार होकर पुरी के मार्ग पर नगर यात्रा करने निकलते हैं। अंत में उन्हें जगन्नाथ पुरी के गुड़िया मंदिर ले जाया जाता है। ये तीनों आठ दिनों तक यहां आराम करते हैं और नौवें दिन सुबह पूजा करने के बाद वापस मंदिर में आते हैं। रथयात्रा के पहले दिन सभी रथों को मुख्य मार्ग की तरफ उचित क्रम में रखा जाता है।
उल्टारथ वापस लौटने की यात्रा को उड़िया भाषा में बहुदा यात्रा या उल्टा रथ कहा जाता है, जो सुबह शुरू होकर जगन्नाथ मंदिर के सामने पूरी होती है। श्रीकृष्ण, बलराम और सुभद्रा, तीनों को उनके रथ में स्थापित किया जाता है और एकादशी तक उनकी पूजा होती है। उसके बाद उन्हें अपने-अपने स्थान पर मंदिर में विराजमान किया जाता है।

कला-शिल्प का अद्वितीय नमूना

 जगन्नाथ मंदिर, कला और शिल्प जगत में अद्वितीय नमूना है। यह मंदिर 294 फुट ऊंचा है। यहां हर साल नया रथ बनता है, परंतु भगवान की प्रतिमाएं वही रहती हैं। हर साल तीनों रथ लकड़ियों से बनाए जाते हैं, जिसमें लोहे का बिल्कुल प्रयोग नहीं किया जाता है। 
बसंत पंचमी के दिन लकड़ियां इकट्ठा की जाती है और तीज के दिन रथ बनाना शुरू होता है। रथ यात्रा के थोड़े दिन पहले ही उसका निर्माण कार्य पूरा होता है। यहां प्रति वर्ष नया रथ बनता है परंतु 9 से 19 वर्ष में आषाढ़ माह आने पर तीनों मूर्तियां नई बनाई जाती हैं। इस प्रक्रिया को नव कलेवर या नया शरीर भी कहा जाता है।
 पुरानी प्रतिमाओं को मंदिर के अंदर स्थित कोयली वैकुंठ नामक स्थान में जमीन में दबा दिया जाता है। इस समय किया गया कोई भी शुभ कार्य अत्यंत फलदायक माना जाता है।

Email us at - jagkalyannews@gmail.com for NEWS/MEMBERSHIP/ADVERTISEMENTS/PHOTOS

स्वागत वर्ष 2013


सम्पादकीय-दिसम्बर-2012

संपादक -संजय अग्रवाल 

देखते ही देखते वर्ष 2012 बीतने वाला है और वर्ष 2013 का आगमन सन्निकट है। सेकेंड, मिनट, घंटा, दिन, सप्ताह, महीना, वर्ष टिक-टिक चलती घड़ी के साथ बीत रहा है। नये वर्ष के स्वागत की परम्परा है लेकिन समझ में नहीं आ रहा है कि- नये वर्ष का स्वागत किस तरह करें। यह तो वही बात हुई कि- ""कैसे मनाऊं दिवाली, हो लाला, अपना निकल रहा दिवाला...''। कमरतोड़ महंगाई से हर कोई त्रस्त है। वैश्विक आर्थिक मंदी की मार साफ दिखाई पड़ रही है। हर चीज के दाम, हर काम के खर्च बढ़ते जा रहे हैं। और बातों को छोड़ दीजिए दैनिक उपयोग, खाने-पीने के सामानों के भाव इतना अधिक हैं कि आम आदमी का गुजर मुश्किल हो रहा है। फिजूलखर्ची रोकने की जरूरत है। शादी-विवाह जैसे कार्यक्रमों में दिखावा, आडम्बर बन्द होने चाहिए। अपने बुजुर्ग जिस सादगी के साथ जीवन-यापन करते थे, उसी राह पर चलने की जरूरत है। सादा जीवन-उच्च विचार वाले हमारे समाज के वरिष्ठ लोगों ने देशभर में अस्पताल, स्कूल, मंदिर, धर्मशालाएं बनवाईं। अपने इन समाजसेवा के कार्यों के कारण जीते जी उन्हें सम्मान तो मिला ही, उनका नाम अमर हो गया। आज भी लोग उनका नाम इज्जत से लेते हैं। आज की पीढ़ी उन लोगों से बहुत अधिक कमा  रही है, लेकिन खर्च सिर्फ अपने लिये किया जा रहा है। नतीजा स्पष्ट है कि समाज जानता ही नहीं इन्हें। आज पुराने अस्पतालों, स्कूलों, धर्मशालाओं का रख-रखाव मुश्किल हो रहा है। नयी बनने के बारे में कहां से सोचा जा सकता है। नया वर्ष इस तरह की तमाम बातों को सोचने पर विवश करता है। आज सोचने की जरूरत है कि हम कहां जा रहे हैं, कहां जाने की जरूरत है। कहीं ऐसा तो नहीं कि हम अंधी दौड़ में शामिल हो गये हैं। नया वर्ष सभी के जीवन को खुशियों से भर दें, सभी स्वस्थ, प्रसन्न और सम्पन्न रहें। प्रभु से यही प्रार्थना है।


Email us at - jagkalyannews@gmail.com for NEWS/MEMBERSHIP/ADVERTISEMENTS/PHOTOS

Tuesday 4 December 2012

गौवंश के बगैर व्यर्थ है जीवन




पृथ्वी के अस्तित्व का सीधा संबंध गौवंश से है। इस दैवीय पशु के बिना न जीवन की कल्पना की जा सकती है न और कुछ। व्यक्ति के जन्म से लेकर मृत्यु पर्यन्त होने वाले सभी संस्कारों में गायों की किसी न किसी रूप में भूमिका को सर्वत्र स्वीकारा गया है और इन संस्कारों में गौवंश का योगदान नहीं हो तो मनुष्य का पूरा जीवन ही व्यर्थ माना गया है।
शुचिता और स्वास्थ्य तथा दिव्यत्व और दैवत्व की प्राप्ति कराने तक की यात्रा में कोई मददगार है तो वह है गाय। गाय हमारी माता के रूप में अर्वाचीन काल से पूजनीय और सर्वोपरि रही है जो हमारा संरक्षण और पोषण करती है। तभी हमारी वैदिक, पौराणिक और शास्त्रीय विधियों तथा परम्पराओं में गाय को सर्वाधिक महत्त्व प्रदान किया गया है। गाय की सेवा का तत्क्षण सुफल प्राप्त होता है।
भारतवर्ष अपने आदिकाल में सोने की चिड़िया कहा जाता था। तब गौवंश का बाहुल्य था और भारतवर्ष में घी-दूध की नदियॉं बहा करती थीं। ऋषिकुल और गुरुकुलों से लेकर जनकुलों तक गौवंश के पूजनीय महत्त्व की वजह से ही सुख-शांति और समृद्धि पसरी हुई थी।
अखण्ड भारत की यह सबसे बड़ी विशेषता रही है। उस जमाने में सभी लोग गाय का दूध ही पिया करते थे और इस कारण सभी में मानवीय संस्कारों की जड़ें मजबूत हुआ करती थी पर आज गौदुग्ध को त्यागने का ही परिणाम है कि हमारी बुद्धि मलीन और पैशाचिक होती जा रही है और इसका दुष्प्रभाव आज हमें चारों तरफ प्रत्यक्ष दिख रहा है। गौवंश की जहॉं ज्यादा मौजूदगी रहती है वहॉं दिव्य वातावरण अपने आप आकार पा लेता है और हर किसी को सुकून प्राप्त होता है चाहे वह मनुष्य हो या जानवर। यह बात प्रामाणिक दृष्टि से सिद्ध है कि गाय की उपस्थिति मात्र से आरोग्य, धन-लक्ष्मी और ऐश्वर्य सम्पदा का प्राचुर्य अपने आप होने लगता है। 
जहॉं गौवंश का आदर सम्मान होता है वहॉं समस्याओं, आतंक और भयों का स्थान नहीं होता। एक जमाना था जब भारतवर्ष में गौवंश समृद्धि का प्रतीक हुआ करता था और गायों की संख्या स्टेट्‌स सिम्बोल हुआ करती थी। आज वे लोग भी कहीं दिखने में नहीं आते जिनके पुरखे गौ ब्राह्मण प्रतिपाल. का उद्घोष करते हुए अपनी बलिष्ठ भुजाओं को हवाओं में लहराते थे।
कालान्तर में कलियुग के प्रभाव और पैशाचिक वृत्तियों की बढ़ोतरी की वजह से गौवंश पर खतरा मण्डराने लगा। सच तो यह है कि जिस दिन से भारत में गौवंश पर अत्याचार शुरू हुए हैं तभी हमने अब अपनी अवनति और दासत्व की डगर पा ली है।
आज जो भी समस्याएं हमारे सामने हैं उनका एकमात्र मूल कारण यह है कि गौवंश की स्थितियां भयावह दौर से गुजर रही हैं। गौवंश पर अन्याय और अत्याचार जिन-जिन क्षेत्रों में होता है वहॉं पृथ्वी का कंपन बढ़ने लगता है और भूकंप तथा प्राकृतिक आपदाओं के आघात पर आघात होने लगते हैं। इसी प्रकार इन क्षेत्रों में लोक स्वास्थ्य और दूसरे कारकों पर भी घातक असर सामने आता है।
जिन लोगों के घरों में गाय पाली जाती है वहॉं बीमारियां भी कम होती हैं जबकि दूसरी ओर जिन घरों में श्वान पाले जा रहे हैं वे किसी न किसी रूप में बीमारियों के घर हुआ करते हैं। मनुष्य की जो भी बीमारियां हैं उनमें गौमूत्र, गौघृत, गौ दुग्ध का अचूक प्रभाव सामने आया है। वैज्ञानिक तथ्य यह भी है कि गाय का स्पर्श मात्र कई बीमारियों के दूषित प्रभाव को निष्फल कर देता है। गाय का दूध पीलापन लिये हुए होता है और इसमें स्वर्ण की मात्रा होती है। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि गाय की रीढ़ पर सूर्य की किरणें पड़ती रहने से उसके दूध में स्वर्ण का अंश अपने आप आने लगता है। यह दूध अमृत से भी बढ़कर है। गौवंश की इस सारी महिमा के बावजूद हमारा यह दुर्भाग्य ही है कि शाश्वत सत्य को स्वीकारने की बजाय हम पाश्चात्य श्वान संस्कृति को जीवन में अपना रहे हैं और अब तो हमारा व्यवहार तक श्वानों की तरह होता जा रहा है।
आज गंभीरता से यह स्वीकारना होगा कि गौवंश के प्रति गैर जिम्मेदाराना कृत्यों के लिए हम स्वयं जिम्मेदार हैं। हमारी बुद्धि इतनी मलीन हो चुकी है कि हमें अच्छी बातें समझ में आती ही नहीं, जैसा दुनिया करती है, हम भी नकलची बन्दरों की तरह वैसा ही करने लगते हैं और अंधानुकरण में रमे हुए हैं।
इसी प्रकार जिन आश्रमों और मन्दिरों में गौशालाएं नहीं हैं वहां भगवान नहीं रहा करते, इस बात को भी अच्छी तरह समझ लेना चाहिए। पर कब अक्ल आएगी धर्म को धंधा बनाए बैठे लोेगों को, जो रुपयों-पैसों के लिए धर्म के स्वरूप को ही विकृत करने में जुटे हुए हैं। मन्दिरों में भगवान के नैवेद्य के लिए निर्मित होने वाले पंचामृत में भी गौदुग्ध व घृत ही होना चाहिए।
हम खुद तय करें कि हम धर्म कर रहे हैं या अधर्म। गौ सेवा करें, गायों को बचाएं। गाय हमारी मॉं है। गाय बचेगी तभी आप और हम बचेंगे, देश बचेगा। हे ईश्वर, उन मूर्खों को सद्बुद्धि दें जो गायों पर अत्याचार ढाते हैं, गायों के नाम पर राजनीति करते हैं, और उन्हें भी जो धर्म के नाम पर धंधे चलाकर खोटे-खोटे हवन करा रहे हैं। उन लोगों को भी सद्बुद्धि की जरूरत है जो बड़ी-बड़ी कुर्सियों पर बैठकर उस गाय को भूल गए हैं जिनका दूध पीकर वे आज इस मुकाम तक पहुंचे हैं।

Email us at - jagkalyannews@gmail.com for NEWS/MEMBERSHIP/ADVERTISEMENTS/PHOTOS

Thursday 29 November 2012

मायापुर, इस्कॉन मंदिर में रास पूर्णिमा





कोलकाता। इस्कॉन के प्रधान केन्द्र मायापुर चन्द्रोदय मंदिर मायापुरधाम में प्रति वर्ष की भांति इस वर्ष भी देव रास पूर्णिमा, देव दीपावली, कार्तिक पूर्णिमा उत्सव धूमधाम से मनाया जा रहा जिसका समापन कल 1 दिसम्बर को होगा।  कार्यक्रम की जानकारी देते हुए निताई केशवा दास जी महाराज ने एक प्रेस विज्ञप्ति के जरिए बताया कि रास पूर्णिमा को करीब से दर्शन करने एवं रास उत्सव का आनंद उठाने के लिए देश-विदेश से हजारों की संख्या में श्रद्धालु मायापुर स्थित इस्कॉन मंदिर में पहुंच चुके हैं और पहुंचने का क्रम जारी है। कार्यक्रम 28 नवम्बर से शुरू हुआ था। एक तरह से यहां अर्द्धकुंभ जैसा नजारा देखने को मिल रहा है।
इस्कॉन मायापुरधाम के जनसम्पर्क अधिकारी गौरांग दास जी महाराज ने बताया कि रास पूर्णिमा को ही आज से 5 हजार वर्ष पूर्व श्रीधाम वृन्दावन में यमुना तट पर भगवान श्रीकृष्ण अपने गोपियों के साथ रासलीला किया था। इस रासलीला को देखने के लिए पशु-पक्षी, पुष्प-लता एवं हवाएं  आदि सभी अपने को समर्पित कर दिया था। जब भगवान श्रीकृष्ण ने इस रासलीला का आयोजन किया था तब उनकी उम्र मात्र 8 वर्ष थी। कार्तिक पूर्णिमा व रास पूर्णिमा को देव दीपावली भी कहा जाता है इस दिन देवी देवताएं दीपावली मनाते हैं।


Email us at - jagkalyannews@gmail.com for NEWS/MEMBERSHIP/ADVERTISEMENTS/PHOTOS

Thursday 22 November 2012

हिंदू त्योहार को जानिए

Sarbjan Hitaye_Sarbjan Sukhaye



हिंदू त्योहार कुछ खास ही हैं लेकिन भारत के प्रत्येक समाज या प्रांत के अलग-अलग त्योहार, उत्सव, पर्व, परंपरा और रीति-रिवाज हो चले हैं। यह लंबे काल और वंश परम्परा का परिणाम ही है कि वेदों को छोड़कर हिंदू अब स्थानीय स्तर के त्योहार और विश्वासों को ज्यादा मानने लगा है। सभी में वह अपने मन से नियमों को चलाता है। कुछ समाजों ने मांस और मदिरा के सेवन हेतु उत्सवों का निर्माण कर लिया है। रात्रि के सभी कर्मकांड निषेध माने गए हैं।
उन त्योहार, पर्व या उत्सवों को मनाने का महत्व अधिक है जिनकी उत्पत्ति स्थानीय परम्परा, व्यक्ति विशेष या संस्कृति से न होकर जिनका उल्लेख वैदिक धर्मग्रंथ, धर्मसूत्र और आचार संहिता में मिलता है। ऐसे कुछ पर्व हैं और इनके मनाने के अपने नियम भी हैं। इन पर्वों में सूर्य-चंद्र की संक्रांतियों और कुम्भ का अधिक महत्व है। सूर्य संक्रांति में मकर सक्रांति का महत्व ही अधिक माना गया है।

मकर संक्रांति :

माघ माह में कृष्ण पंचमी को मकर सक्रांति देश के लगभग सभी राज्यों में अलग-अलग सांस्कृतिक रूपों में मनाई जाती है। लोग भगवान सूर्य का आशीर्वाद लेने के लिए गंगा और प्रयाग जैसी पवित्र नदियों में डुबकियां लगाते हैं, पतंग उड़ाते हैं, गाय को चारा खिलाते हैं। इस दिन तिल और गुड़ खाने का महत्व है। जनवरी में मकर संक्रांति के अलावा शुक्ल पक्ष में बसंत पंचमी को भी मनाया जाता।

वसन्त पञ्चमी

वसंत पंचमी एक भारतीय त्योहार है, इस दिन विद्या की देवी सरस्वती की पूजा की जाती है। यह पूजा पूर्वी भारत में बड़े उल्लास से मनायी जाती है। इस दिन स्त्रियाँ पीले वस्त्र धारण करती हैं।
प्राचीन भारत में पूरे साल को जिन छह मौसमों में बाँटा जाता था उनमें वसंत लोगों का सबसे मनचाहा मौसम था।जब फूलों पर बहार आ जाती, खेतों मे सरसों का सोना चमकने लगता, जौ और गेहूँ की बालियाँ खिलने लगतीं, आमों के पेड़ों पर बौर आ जाता और हर तरफ़ रंग-बिरंगी तितलियाँ मँडराने लगतीं। वसंत ऋतु का स्वागत करने के लिए माघ महीने के पाँचवे दिन एक बड़ा जश्न मनाया जाता था जिसमें विष्णु और कामदेव की पूजा होती, यह वसंत पंचमी का त्यौहार कहलाता था। शास्त्रों में बसंत पंचमी को ऋषि पंचमी से उल्लेखित किया गया है, तो पुराणों-शास्त्रों तथा अनेक काव्यग्रंथों में भी अलग-अलग ढंग से इसका चित्रण मिलता है।


होली / होलिकोत्सव / रंगोत्सव 

होली वसंत ऋतु में मनाया जाने वाला एक महत्वपूर्ण भारतीय त्योहार है। यह पर्व हिंदू पंचांग के अनुसार फाल्गुन मास की पूर्णिमा को मनाया जाता है। रंगों का त्योहार कहा जाने वाला यह पर्व पारंपरिक रूप से दो दिन मनाया जाता है। पहले दिन को होलिका जलायी जाती है, जिसे होलिका दहन भी कहते है। दूसरे दिन, जिसे धुरड्डी, धुलेंडी, धुरखेल या धूलिवंदन कहा जाता है, लोग एक दूसरे पर रंग, अबीर-गुलाल इत्यादि फेंकते हैं, ढोल बजा कर होली के गीत गाये जाते हैं, और घर-घर जा कर लोगों को रंग लगाया जाता है। ऐसा माना जाता है कि होली के दिन लोग पुरानी कटुता को भूल कर गले मिलते हैं और फिर से दोस्त बन जाते हैं। एक दूसरे को रंगने और गाने-बजाने का दौर दोपहर तक चलता है। इसके बाद स्नान कर के विश्राम करने के बाद नए कपड़े पहन कर शाम को लोग एक दूसरे के घर मिलने जाते हैं, गले मिलते हैं और मिठाइयाँ खिलाते हैं।

राग-रंग का यह लोकप्रिय पर्व वसंत का संदेशवाहक भी है। राग अर्थात संगीत और रंग तो इसके प्रमुख अंग हैं ही, पर इनको उत्कर्ष तक पहुँचाने वाली प्रकृति भी इस समय रंग-बिरंगे यौवन के साथ अपनी चरम अवस्था पर होती है। फाल्गुन माह में मनाए जाने के कारण इसे फाल्गुनी भी कहते हैं। होली का त्योहार वसंत पंचमी से ही आरंभ हो जाता है। उसी दिन पहली बार गुलाल उड़ाया जाता है। इस दिन से फाग और धमार का गाना प्रारंभ हो जाता है। खेतों मेंसरसों खिल उठती है। बाग-बगीचों में फूलों की आकर्षक छटा छा जाती है। पेड़-पौधे, पशु-पक्षी और मनुष्य सब उल्लास से परिपूर्ण हो जाते हैं। खेतों में गेहूँ की बालियाँ इठलाने लगती हैं। किसानों का ह्रदय ख़ुशी से नाच उठता है। बच्चे-बूढ़े सभी व्यक्ति सब कुछ संकोच और रूढ़ियाँ भूलकर ढोलक-झाँझ-मंजीरों की धुन के साथ नृत्य-संगीत व रंगों में डूब जाते हैं। चारों तरफ़ रंगों की फुहार फूट पड़ती है।

महाशिवरात्रि :महाशिवरात्रि हिन्दुओं का एक प्रमुख त्योहार है। यह भगवान शिव का प्रमुख पर्व है।
फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी को शिवरात्रि पर्व मनाया जाता है। माना जाता है कि सृष्टि के प्रारंभ में इसी दिन मध्यरात्रि भगवान् शंकर का ब्रह्मा से रुद्र के रूप में अवतरण हुआ था। प्रलय की वेला में इसी दिन प्रदोष के समय भगवान शिव तांडव करते हुए ब्रह्मांड को तीसरे नेत्र की ज्वाला से समाप्त कर देते हैं। इसीलिए इसे महाशिवरात्रि अथवा कालरात्रि कहा गया। तीनों भुवनों की अपार सुंदरी तथा शीलवती गौरां को अर्धांगिनी बनाने वाले शिव प्रेतों व पिशाचों से घिरे रहते हैं। उनका रूप बड़ा अजीब है। शरीर पर मसानों की भस्म, गले में सर्पों का हार, कंठ में विष, जटाओं में जगत-तारिणी पावन गंगा तथा माथे में प्रलयंकर ज्वाला है। बैल को वाहन के रूप में स्वीकार करने वाले शिव अमंगल रूप होने पर भी भक्तों का मंगल करते हैं और श्री-संपत्ति प्रदान करते हैं।

राम नवमी : 

यह त्योहार भगवान विष्णु के सातवें जन्म के उपलक्ष्य में मनाया जाता है, भगवान श्रीराम जो चैत्र मास के नौवें दिन पैदा हुए थे। श्रीराम ने दानव राजा रावण को मारा था। यह त्योहार अप्रैल में आता है।

हनुमान जयंती : 

पंडितों और ज्योतिषियों के अनुसार चैत्र माह की पूर्णिमा पर भगवान राम की सेवा के उद्देश्य से भगवान शंकर के ग्यारहवें रुद्र ने अंजना के घर हनुमान के रूप में जन्म लिया था। इसी दिन हनुमान जयंती मनाई जाती है। इस दिन का हिन्दू धर्म में सबसे ज्यादा महत्व माना जाता है।
Santosh hi Param Dharm hai

गुरुपूर्णिमा : 

परमेश्वर, देवी-देवता, पितर के अलावा हिन्दू धर्म में गुरु का भी महत्व है। आषाढ़ माह के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को गुरु पूर्णिमा या व्यास पूर्णिमा कहते हैं। भारत भर में यह पर्व बड़ी श्रद्धा के साथ मनाया जाता है। प्राचीनकाल में जब विद्यार्थी गुरु के आश्रम में निःशुल्क शिक्षा ग्रहण करता था तो इसी दिन श्रद्धा भाव से प्रेरित होकर अपने गुरु का पूजन करके उन्हें अपनी शक्ति सामर्थ्यानुसार दक्षिणा देकर कृतकृत्य होता था।

श्रावण मास : 

इसके अलावा हिन्दू धर्म के प्रमुख तीन देवताओं के पर्व को मनाया जाता है उनमें शिव के लिए महाशिवरात्रि और श्रावण मास प्रमुख है और उनकी पत्नी पार्वती के लिए चैत्र नवरात्रि और शारदीय नवरात्रि प्रमुख त्योहार है। इसके अलावा शिव पुत्र भगवान गणेश के लिए गणेश चतुर्थी का पर्व गणेशोत्सव का नाम से मनाया जाता है जो भाद्रपद के शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी को आता है।

रक्षाबन्धन :
रक्षाबन्धन एक भारतीय त्यौहार है जो प्रतिवर्ष श्रावण मास की पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है। श्रावण (सावन) में मनाये जाने के कारण इसे श्रावणी (सावनी) या सलूनो भी कहते हैं। रक्षाबन्धन में राखी या रक्षासूत्र का सबसे अधिक महत्व है। राखी कच्चे सूत जैसे सस्ती वस्तु से लेकर रंगीन कलावे, रेशमी धागे, तथा सोने या चाँदी जैसी मँहगी वस्तु तक की हो सकती है। राखी सामान्यतः बहनें भाई को ही बाँधती हैं परन्तु ब्राह्मणों, गुरुओं और परिवार में छोटी लड़कियों द्वारा सम्मानित सम्बन्धियों (जैसे पुत्री द्वारा पिता को) भी बाँधी जाती है। कभी कभी सार्वजनिक रूप से किसी नेता या प्रतिष्ठित व्यक्ति को भी राखी बाँधी जाती है।
अब तो प्रकृति संरक्षण हेतु वृक्षों को राखी बाँधने की परम्परा भी प्रारम्भ हो गयी है। हिन्दुस्तान में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के पुरुष सदस्य परस्पर भाईचारे के लिये एक दूसरे को भगवा रंग की राखी बाँधते हैं। हिन्दू धर्म के सभी धार्मिक अनुष्ठानों में रक्षासूत्र बाँधते समय कर्मकाण्डी पण्डित या आचार्य संस्कृत में एक श्लोक का उच्चारण करते हैं, जिसमें रक्षाबन्धन का सम्बन्ध राजा बलिसे स्पष्ट रूप से दृष्टिगोचर होता है। यह श्लोक रक्षाबन्धन का अभीष्ट मन्त्र है। इस श्लोक का हिन्दी भावार्थ है- "जिस रक्षासूत्र से महान शक्तिशाली दानवेन्द्र राजा बलि को बाँधा गया था, उसी सूत्र से मैं तुझे बाँधता हूँ, तू अपने संकल्प से कभी भी विचलित न हो।"

कृष्ण जन्माष्टमी : 

श्री कृष्णजन्माष्टमी भगवान श्री कृष्ण का जनमोत्स्व है। योगेश्वर कृष्ण के भगवद गीता के उपदेश अनादि काल से जनमानस के लिए जीवन दर्शन प्रस्तुत करते रहे हैं। जन्माष्टमी भारत में हीं नहीं बल्कि विदेशों में बसे भारतीय भी इसे पूरी आस्था व उल्लास से मनाते हैं। श्रीकृष्ण ने अपना अवतार भाद्रपद माह की कृष्ण पक्ष की अष्टमी को मध्यरात्रि को अत्याचारी कंस का विनाश करने के लिए मथुरा में लिया। चूंकि भगवान स्वयं इस दिन पृथ्वी पर अवतरित हुए थे अत: इस दिन को कृष्ण जन्माष्टमी के रूप में मनाते हैं। इसीलिए श्रीकृष्ण जन्माष्टमी के मौके पर मथुरा नगरी भक्ति के रंगों से सराबोर हो उठती है।

श्रीकृष्ण जन्माष्टमी के पावन मौके पर भगवान कान्हा की मोहक छवि देखने के लिए दूर दूर से श्रद्धालु आज के दिन मथुरापहुंचते हैं। श्रीकृष्ण जन्मोत्सव पर मथुरा कृष्णमय हो जात है। मंदिरों को खास तौर पर सजाया जाता है। ज्न्माष्टमी में स्त्री-पुरुष बारह बजे तक व्रत रखते हैं। इस दिन मंदिरों में झांकियां सजाई जाती है और भगवान कृष्ण को झूला झुलाया जाता है। और रासलीला का आयोजन होता है।

श्राद्ध-तर्पण : 

परमेश्वर, देवी-देवताओं के अलावा हिन्दू धर्म में पितृ पूजन नहीं, श्राद्ध करने का महत्व है। पितरों के लिए श्रद्धा से किए गए मुक्ति कर्म को श्राद्ध कहते हैं तथा तृप्त करने की क्रिया और देवताओं, ऋषियों या पितरों को तंडुल या तिल मिश्रित जल अर्पित करने की क्रिया को तर्पण कहते हैं। तर्पण करना ही पिंडदान करना है। श्राद्ध पक्ष का सनातन हिंदू धर्म में बहुत ही महत्व माना गया है।

नवरात्रि

नवरात्रि एक हिंदू पर्व है। नवरात्रि संस्कृत शब्द है, जिसका अर्थ होता है नौ रातें । यह पर्व साल में चार बार आता है। चैत्र, आषाढ, अश्विन, पोष प्रतिपदा से नवमी तक मनाया जाता है। नवरात्रि के नौ रातो में तीन देवियों - महाकाली, महालक्ष्मी और महासरस्वतीया सरस्वतीकि तथा दुर्गा के नौ स्वरुपों की पूजा होती है जिन्हे नवदुर्गा कहते हैं ।

दुर्गापूजा

दुर्गापूजा हिन्दुओ का महत्वपुर्ण त्योहार है। दुर्गापूजा मा दुर्गा कि पुजा है। यह आश्वीण महिने के दुसरे पख्बारे में होता है। आश्वीण महिने के दुसरे पख्बारे के पहले दिन यह पुजा प्रारंभ होती है और नवमें दिन {नवरात्रा}यह पुजा समपन्न होती है।
दुर्गा पूजा का पर्व भारतीय सांस्कृतिक पर्वों में सबसे ज़्यादा लोकप्रिय है। लगभग दशहरा, दीवाली और होली की तरह इसमें उत्सव धार्मिकता का पुट आज सबसे ज़्यादा है। बंगाल के बारे में कहा जाता है कि बंगाल जो आज सोचता है, कल पूरा देश उसे स्वीकार करता है। बंगाल के नवजागरण को इसी परिप्रेक्ष्य में इतिहासकार देखते हैं। यानि उन्नीसवीं शताब्दी की भारतीय आधुनिकता के बारे में भी यही बात कही जाती है कि बंगाल से ही आधुनिकता की पहली लहर का उन्मेष हुआ। स्वतंत्रता का मूल्य बंगाल से ही विकसित हुआ। सामाजिक सुधार, स्वराज्य आंदोलन, भारतीय समाज और साहित्य में आधुनिकता और प्रगतिशील मूल्य बंगाल से ही विकसित हुए और कालांतर में पूरे देश में इसका प्रचार-प्रसार हुआ।
संयोग से दुर्गा पूजा पर्व की ऐतिहासिकता बंगाल से ही जुड़ी है। आज पूरा देश इसे धूमधाम से मनाता है। दुर्गा पूजा की परंपरा का सूत्रपात यदि बंगाल से हुआ है तो इसका बंगाल के नवजागरण से क्या रिश्ता है? क्योंकि नवजागरण तो आधुनिक आंदोलन की चेतना है, जबकि दुर्गा पूजा ठीक उलट परंपरा का हिस्सा है। पर ग़ौर करने की बात है कि बंगाल दुर्गा पूजा को परंपरा की चीज़ मानकर उसे पिछड़ा या आधुनिकता का निषेध नहीं मानता है। बल्कि दुर्गा पूजा की लोकप्रियता को देखकर आज लगता है, यह भी बंगाल के नवजागरण का एक बहुमूल्य हिस्सा है। बंगाल के आधुनिक जीवन में दुर्गा पूजा की परंपरा का चलन दरअसल आधुनिकता में परंपरा का एक बेहतर प्रयोग है। सूक्ष्म दृष्टि से देखा जाए को परंपरा में प्रयोग की आधुनिकता है।

दीपावली / दिवाली / दीपोत्सव
दीपावली का अर्थ है दीपों की पंक्ति। दीपावली शब्द ‘दीप’ एवं ‘आवली’ की संधि से बना है। आवली अर्थात पंक्ति, इस प्रकार दीपावली शब्द का अर्थ है, दीपों की पंक्ति । भारत वर्ष में मनाए जानेवाले सभी त्यौहारों में दीपावली का सामाजिक और धार्मिक दोनों दृष्टि से अत्यधिक महत्त्व है। इसे दीपोत्सव भी कहते हैं। ‘तमसो मा ज्योतिर्गमय’ अर्थात् ‘अंधेरे से ज्योति अर्थात प्रकाश की ओर जाइए’ यह उपनिषदों की आज्ञा है। इसे सिख, बौद्ध तथा जैन धर्म के लोग भी मनाते हैं। माना जाता है कि दीपावली के दिनअयोध्या के राजा श्री रामचंद्र अपने चौदह वर्ष के वनवास के पश्चात लौटे थे। अयोध्यावासियों का ह्रदय अपने परम प्रिय राजा के आगमन से उल्लसित था। श्री राम के स्वागत में अयोध्यावासियों ने घी के दीए जलाए । कार्तिक मास की सघन काली अमावस्या की वह रात्रि दीयों की रोशनी से जगमगा उठी। तब से आज तक भारतीय प्रति वर्ष यह प्रकाश-पर्व हर्ष व उल्लास से मनाते हैं। यह पर्व अधिकतर ग्रिगेरियन कैलन्डर के अनुसार अक्तूबर या नवंबर महीने में पड़ता है। दीपावली दीपों का त्योहार है। इसे दीवाली या दीपावली भी कहते हैं। दीवाली अँधेरे से रोशनी में जाने का प्रतीक है। भारतीयों का विश्वास है कि सत्य की सदा जीत होती है झूठ का नाश होता है। दीवाली यही चरितार्थ करती है- असतो माऽ सद्गमय, तमसो माऽ ज्योतिर्गमय। दीपावली स्वच्छता व प्रकाश का पर्व है। कई सप्ताह पूर्व ही दीपावली की तैयारियाँ आरंभ हो जाती है। लोग अपने घरों, दुकानों आदि की सफाई का कार्य आरंभ कर देते हैं। घरों में मरम्मत, रंग-रोगन, सफ़ेदी आदि का कार्य होने लगता हैं। लोग दुकानों को भी साफ़ सुथरा का सजाते हैं। बाज़ारों में गलियों को भी सुनहरी झंडियों से सजाया जाता है। दीपावली से पहले ही घर-मोहल्ले, बाज़ार सब साफ-सुथरे व सजे-धजे नज़र आते हैं।

कार्तिक मास : 

भगवान विष्णु के लिए कार्तिक मास नियुक्त है। इसके अलावा सभी एकादशी, चतुर्थी और ग्यारस को विष्णु के लिए उपवास रखा जाता है। देवोत्थान एकादशी उनमें प्रमुख है।
आषाढ़ शुक्ल एकादशी को भगवान विष्णु क्षीरसागर में चार मास के लिए योगनिद्रा में लीन हो जाते हैं। कार्तिक शुक्ल एकादशी को चातुर्मास संपन्न होता है और इसी दिन भगवान अपनी योगनिद्रा से जागते हैं। भगवान के जागने की खुशी में ही देवोत्थान एकादशी का व्रत संपन्न होता है। इसी माह में विष्णु की पत्नी लक्ष्मी के लिए दीपावली का त्योहार प्रमुखता से मनाया जाता है।

पुरुषोत्तम मास : 

इसे अधिक मास भी कहते हैं। धार्मिक शास्त्र और पुराणों के अनुसार हर तीसरे साल अधिक मास यानी पुरुषोत्तम मास की उत्पत्ति होती है। इस मास में भगवान विष्णु का पूजन, जप, तप, दान से अनंत पुण्यों की प्राप्ति होती है। खास तौर पर भगवान कृष्ण, भगवद्‌गीता, श्रीराम की आराधना, कथा वाचन और विष्णु भगवान की उपासना की जाती है। इस माह भर में उपासना करने का अपना अलग ही महत्व माना गया है।

जगकल्याण के  इस आलेख में गणगौर, अक्षय तृतीया, रथयात्रा, नागपंचमी, भादी अमावस, हरितालिका तीज, विश्वकर्मा पूजा, विजयादशमी, दशहरा, माघी पूर्णिमा, 26 एकादशियाँ सहित और भी कई त्योहारों के बारे में अभी जानकारी नहीं दी गई है। बचे त्योहारों को बाद में शामिल कर ली जाएगी।Dusre se Waisa hi Apeksha Rakhen Jaisa ki Aap Karte hain


Email us at - jagkalyannews@gmail.com for NEWS/MEMBERSHIP/ADVERTISEMENTS/PHOTOS

Saturday 27 October 2012

Govardhan and Annakut Festivals-2012


गोवर्धन एवं अन्नकूट पर्व-2012
govardhan1

गोवर्धन पर्व प्रत्येक वर्ष दिपावली के एक दिन बाद मनाया जाता है. वर्ष 2012 में यह् पर्व 14 नवम्बर, कार्तिक मास शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि को श्रद्धा व विश्वास के साथ मनाया जायेगा. गोवर्धन पूजा के दिन ही अन्नकूट पर्व भी मनाया जाता है. दोनों पर्व एक दिन ही मनाये जाते है, और दोनों का अपना- अपना महत्व है. गो वर्धन पूजा विशेष रुप से श्री कृ्ष्ण की जन्म भूमि या भगवान श्री कृ्ष्ण से जुडे हुए स्थलों में विशेष रुप से मनाया जाता है.

इसमें मथुरा, काशी, गोकुल, वृ्न्दावन आदि में मनाया जाता है. इस दिन घर के आँगन में गोवर्धन पर्वत की रचना की जाती है. श्री कृ्ष्ण की जन्म स्थली बृ्ज भूमि में गोवर्धन पर्व को मानवाकार रुप में मनाया जाता है. यहां पर गोवर्धन पर्वत उठाये हुए, भगवान श्री कृ्ष्ण के साथ साथ उसके गाय, बछडे, गोपिया, ग्वाले आदि भी बनाये जाते है. और इन सबको मोर पंखों से सजाया जाता है.

और गोवर्धन देव से प्रार्थना कि जाती है कि पृ्थ्वी को धारण करने वाले हे भगवन आप गोकुल के रक्षक है, भगवान श्री कृ्ष्ण ने आपको अपनी भुजाओं में उठाया था, आप मुझे भी धन-संपदा प्रदान करें. यह दिन गौ दिवस के रुप में भी मनाया जाता है. एक मान्यता के अनुसार इस दिन गायों की सेवा करने से कल्याण होता है. जिन क्षेत्रों में गाय होती है, उन क्षेत्रों में गायों को प्रात: स्नान करा कर, उन्हें कुमकुम, अक्षत, फूल-मालाओं से सजाया जाता है.

गोवर्धन पर्व पर विशेष रुप से गाय-बैलों को सजाने के बाद गोबर का पर्वत बनाकर इसकी पूजा की जाती है. गोबर से बने, श्री कृ्ष्ण पर रुई और करवे की सीके लगाकर पूजा की जाती है. गोबर पर खील, बताशे ओर शक्कर के खिलौने चढाये जाते है.

मथुरा-वृंन्दावन में यह उत्सव बहुत धूमधाम से मनाया जाता है. सायंकाल में भगवान को छप्पन भोग का नैवैद्ध चढाया जाता है.

गोवर्धन पूजा कथा
Story of Govardhan Puja

गोवर्धन पूजा के विषय में एक कथा प्रसिद्ध है. बात उस समय की है, जब भगवान श्री कृ्ष्ण अपनी गोपियों और ग्वालों के साथ गायं चराते थे. गायों को चराते हुए श्री कृ्ष्ण जब गोवर्धन पर्वत पर पहुंचे तो गोपियां 56 प्रकार के भोजन बनाकर बडे उत्साह से नाच-गा रही थी. पूछने पर मालूम हुआ कि यह सब देवराज इन्द्र की पूजा करने के लिये किया जा रहा है. देवराज इन्द्र प्रसन्न होने पर हमारे गांव में वर्षा करेगें. जिससे अन्न पैदा होगा. इस पर भगवान श्री कृ्ष्ण ने समझाया कि इससे अच्छे तो हमारे पर्वत है, जो हमारी गायों को भोजन देते है.

ब्रज के लोगों ने श्री कृ्ष्ण की बात मानी और गोवर्धन पर्वत की पूजा करनी प्रारम्भ कर दी. जब इन्द्र देव ने देखा कि सभी लोग मेरी पूजा करने के स्थान पर गोवर्धन पर्वत की पूजा कर रहे है, तो उन्हें बिल्कुल अच्छा नहीं लगा. इन्द्र गुस्से में आयें, और उन्होने ने मेघों को आज्ञा दीकी वे गोकुल में जाकर खूब बरसे, जिससे वहां का जीवन अस्त-व्यस्त हो जायें.

अपने देव का आदेश पाकर मेघ ब्रजभूमि में मूसलाधार बारिश करने लगें. ऎसी बारिश देख कर सभी भयभीत हो गयें. ओर दौड कर श्री कृ्ष्ण की शरण में पहुंचें, श्री कृ्ष्ण से सभी को गोवर्धन पर्व की शरण में चलने को कहा. जब सब गोवर्धन पर्वत के निकट पहुंचे तो श्री कृ्ष्ण ने गोवर्धन को अपनी कनिष्का अंगूली पर उठा लिया. सभी ब्रजवासी भाग कर गोवर्धन पर्वत की नीचे चले गयें. ब्रजवासियों पर एक बूंद भी जल नहीं गिरा. यह चमत्कार देखकर इन्द्रदेव को अपनी गलती का अहसास हुआ. और वे श्री कृ्ष्ण से क्षमा मांगने लगें. सात दिन बाद श्री कृ्ष्ण ने गोवर्धन पर्वत नीचे रखा और ब्रजबादियों को प्रतिवर्ष गोवर्धन पूजा और अन्नकूट पर्व मनाने को कहा. तभी से यह पर्व इस दिन से मनाया जाता है.

अन्नकूट पर्व
Annakut Festival

अन्नकूट पर्व भी गोवर्धन पर्व से ही संबन्धित है. इस दिन 56 प्रकार की सब्जियों को मिलाकर एक भोजन तैयार किया जाता है, जिसे 56 भोग की संज्ञा दी जाती है. यह पर्व विशेष रुप से प्रकृ्ति को उसकी कृ्पा के लिये धन्यवाद करने का दिन है. इस महोत्सव के विषय में कहा जाता है कि इस पर्व का आयोजन व दर्शन करने मात्र से व्यक्ति को अन्न की कमी नहीं होती है. उसपर अन्नपूर्णा की कृ्पा सदैव बनी रहती है.

अन्नकूट एक प्रकार से सामूहिक भोज का दिन है. इसमें पूरे परिवार, वंश व समाज के लोग एक जगह बनाई गई रसोई को भगवान को अर्पन करने के बाद प्रसाद स्वरुप ग्रहण करते है. काशी के लगभग सभी देवालयों में कार्तिक मास में अन्नकूट करने कि परम्परा है. काशी के विश्वनाथ मंदिर में लड्डूओं से बनाये गये शिवालय की भव्य झांकी के साथ विविध पकवान बनाये जाते है.
Email us at - jagkalyannews@gmail.com for NEWS/MEMBERSHIP/ADVERTISEMENTS/PHOTOS

DHARMMARG: 13, November. 2012 Deepavali Puja Muhurt

DHARMMARG: 13, November. 2012 Deepavali Puja Muhurt: दिपावली पूजन मुहूर्त : 13 नवम्बर, 2012  श्री महालक्ष्मी पूजन व दीपावली का महापर्व कार्तिक कृ्ष्ण पक्ष की अमावस्या में प्रदोष काल, ...

Email us at - jagkalyannews@gmail.com for NEWS/MEMBERSHIP/ADVERTISEMENTS/PHOTOS

सभा-संस्था समाचार


भूकैलाश धाम में गायत्री अश्वमेध यज्ञ 21 दिसम्बर से

कोलकाता(जगकल्याण)। विश्व कल्याण जन-कल्याण केन्द्र की ओर से भूकैलाश धाम, खिदिरपुर में 1008 कुंडीय गायत्री अश्वमे यज्ञ का आयोजन 21 से 25 दिसम्बर तक होगा। संस्था के चेयरमैन श्रवण कुमार अग्रवाल के अनुसार कार्यक्रम के पहले दिन 21 दिसम्बर को दिन के 11 बजे विराट कलश एवं शोभायात्रा निकाली जाएगी। 22 को प्रात: ध्वजारोहण, स्वागत समारोह, अश्वमेधिक देव पूजन, यज्ञानि प्रज्ज्वलन, सायंकाल प्रवचन, 23 को प्रात: यज्ञ, सायं प्रवन, 24 को प्रात: यज्ञ आहुति, शाम को प्रवचन, 25 को प्रात: यज्ञ पूर्णाहुति, आमंत्रित देवगणों की विदाई, अश्वमेधक प्रसाद वितरण होगा।

हावड़ा वेलफेयर ट्रस्ट व नरसिंह चैरिटेबल वेलफेयर ट्रस्ट द्वारा वस्त्र वितरण

हावड़ा। शहर के दो व्सनाम धन्य सामाजिक संस्थान हावड़ा वेलफेयर ट्र्रस्ट व नरसिंह चैरिटेबल वेलफेयर ट्रस्ट द्वारा पश्चिम मिदनापुर के झाड़ग्राम जिला पुलिस के अंतर्गत बेलपहाड़ी थाना के जंगल महल अंचल में दुर्गापूजा के उपलक्ष्य में 300 महिलाओें में साड़ियां एवं इतने ही बच्चों में पैंट व टी-शर्ट वितरित किए गए। इस निमित आयोजित वस्त्र वितरण शिविर का उद्‌घाअन करते हुए जिलापुलिस अधीक्षक श्रीमती भारती घोष ने कहा कि शहरों में अनेक सामाजिक संगठन हैं लेकिन सुदूर इलाकों में जहां अभाव ग्रस्त लोगों की भरमार है, वहां ऐसे संगठनों की भी कमी है। ऐसे में हावड़ा से लगभग 200 किलोमीटर  दूर आकर इन दोनों संगठनों ने दुर्गापूजा के ठीक पहले इन जरूरतमंदों को नए वस्त्र उपलब्ध कराकर सेवा का अनुपम उदाहरण प्रस्तुत किया है। श्रीमती घोष ने कहा कि जहां जरूरत है, वहां जाकर अपनी सेवा प्रदान करना सामाजिक संस्थाओे का प्रथम कर्तव्य होना चाहिए और इन दोनों संगठनों ने इस कर्तव्य का निर्वाह कर दूसरे संगठनों के प्रति अनुकरणीय उदाहरण प्रस्तुत किया है। इस अवसर पर अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक (मुख्यालय) श्री सुमित कुमार, हावड़ा वेलफेयर ट्रस्ट के सेवाकार्य प्रभरी श्री सत्यनारायण खेतान, नरसिंह चैरिटेबल वेलफेयर ट्रस्ट के प्रमुख श्री अनिल गोयल, भीमसेन जिंदल, आशीष बंसल, बिजय गोयल, रामसिंह यादव, अशोक गोयल, राजेश सिंह सहित अनेक गणमान्य लोग उपस्थित थे।

पूर्वांचल नागरिक समिति का दशहरा महोत्सव

कोलकाता। पूर्वांचल नागरिक समिति द्वारा दशहरा महोत्सव का आयोजन नलबन वोटिंग काम्प्लेक्स में 24 अक्टूबर को किया गया। समिति के अध्यक्ष सुरेन्द्र बजाज, संयोजक सांस्कृतिक विभाग प्रदीप अग्रवाल (संघई), सचिव उमेश केडिया के अनुसार शाम 6 से 8 बजे तक राजस्थानी लोकगीत, राम भक्ति गीतों की प्रस्तुति हुई। आतिशबाजी के साथ रावण दहण किया गया। राजस्थान के प्रसिद्ध कलाकार सांवरमल रंगा एवं उनकी पार्टी ने राजस्थानी लोकगीतों से समां बांध दिया । रावण के पुतले का दहन भी आतिशबाजी के साथ आकर्षक रहा। बड़ी संख्या में पहुंचे लोगों ने दशहरा महोत्सव का आनंद लिया।

श्री श्री धोली सती दादी प्रचार समिति का नवरात्र महोत्सव

कोलकाता। श्री श्री धोली सती प्रचार समिति, कोलकाता द्वारा नवरात्र महोत्सव का भव्य 9 दिवसीय आयोजन न्यू हरियाणा भवन में किया गया। एकम 16 अक्टूबर को सज्जन-जगदीश सराफ के सौजन्य से, दूज को प्रदीप सराफ, तीज को नंदकिशोर-विद्या देवी बिंदल, चौथ को अनिल-रोहित सराफ, पंचमी-षष्ठी को सुशील-अनिल सराफ, सप्तमी को बाल किशन सराफ, अष्टमी को विनोद-उमेश सराफ, तथा नवमी को मुरालीलाल-राजेश सराफ के सौजन्य से आयोजन हुआ। सभी दिन भक्तों की भारी भीड़ रही। समिति के पदाधिकारी तथा कार्यकर्त्तागण से मिलकर महोत्सव को सफल बनाया।

श्री राधा गोविन्द मंदिर में दुर्गापूजन

कोलकाता। श्री राधा गोविन्द मंदिर समिति द्वारा भवानीपुर स्थित राधाभक्ति के सन्त श्री कल्याणेश्वरजी महाराज के सान्निध्य मेें दुर्गापूजन (नवरात्र) एवं कात्यायनी योग माया दुर्गा ठाकुरानी पूजा महोत्सव विधि विधान एवं हर्षोल्लास के साथ संपन्न हुआ। 19 अक्टूबर से शुरू हुए कार्यक्रम में समिति द्वारा श्री राधागोविन्द के श्री विग्रह का श़ृंगार पूजन, कीर्तन, अर्चना, भजन, आरती और महाप्रसाद (भंडारे) का आयोजन प्रत्येक वर्ष की भांति किया गया। श्री दुर्गापुजन व कात्यायनी पुजन समिति में शामिल थे लक्ष्मीकांत तिवारी, दीपक मिश्रा, वैश्वानर चटर्जी, प्रयाग राज बंसल, बृजमोहन नांगलिया, नवल किशोर सोमानी, कृष्ण कुमार सिंघानिया, डॉ. बल्लभ नागोरी, सज्जन बंसल, चम्पालाल सरावगी, अजय मीमानी, राजीव गुप्ता, शंभुनाथ राय, प्रकाश किला, रामलाल अग्रवाल, गणेश कोठारी, परमानन्द अग्रवाल, वशिष्ट सिंह, श्यामसुन्दर पोद्दार (वर्मा), सुब्रत मित्रा, अंजन दासगुप्ता, श्रीमती अंजू देव, सुश्री सरिता सिंह एवं डा. सुश्री शिवानी साहा।

जरूरतमंदों में वस्त्र वितरण

कोलकाता। शारदोत्सव के अवसर पर अंतर्राष्ट्रीय मध्य देशीय वैश्य सभा के द्वारा नैहट्टी के मादराल ग्रामीण अंचल में भव्य वस्त्र वितरण का कार्यक्रम आयोजित किया गया। कार्यक्रम की शुरूआत दीप प्रज्जवलन एवं झण्डोत्तोलन के साथ किया गया। प्रधान अतिथि के रूप में उपस्थित शिवनाथ साव सेवा मूलक इस कार्य के लिए कार्यकर्ताओं की सेवा के प्रति निष्ठा एवं चेष्टा को सराहनीय कदम बताया। हर संभव सहयोग की बात कही। स्थानीय विधायक अर्जुन सिंह एवं भाटपाड़ा नगरपालिका के उपचेयरमैन सोमनाथ तालुकदार एवं अन्य स्थानीय सामाजिक कार्यकर्ताओं ने कहा त्यौहार के समय गरीबी के कारण जो लोग नये वस्त्र नहीं ले पाते हैं उनके लिए वस्त्र प्रदान करना वास्तविक मां की पूजा है।

श्री शिवशक्ति सेवा समिति 

कोलकाता। द्वितीय अंतर्राष्ट्रीय पतंग उत्सव के मौके पर कोलकाता की मशहूर सामाजिक संस्था श्री शिव शक्तिसेवा समिति ने उत्सव में आये सैकड़ों बच्चों में मिठाइयां बांटी एवं पानी की व्यवस्था की। यह सूचना देते हुए समिति के सचिव दिनेश सिंघानिया ने बताया कि राज्य सरकार के पर्यटन विभाग ने विशेष रूप से समिति को पिछले वर्ष की तरह इस वर्ष भी इस कार्य के लिए अधिकृत किया था। समिति की ओर से अध्यक्ष भानीराम सुरेका, विनोद सराफ, राजकुमार डाबड़ीवाल, अरुण सुरेका, रामावतार बागला, सज्जन कुमार अग्रवाल, आनंद अग्रवाल आदि ने मौके पर उपस्थित होकर पतंग उड़ाये, बच्चों का उत्साह बढ़ाया और मिठाइयां बांटी।

भण्डारा चौक में महाप्रसाद 

कोलकाता। श्री श्री विश्व शांति मां काली प्रचार सेवा समिति एवं सहयोगी संस्था परमार्थ के संयुक्त तत्वावधान में कलाकार स्ट्रीट एवं शोभाराम बैशाक स्ट्रीट (भण्डारा चौक) के संगम स्थल पर नागेश सिंह के नेतृत्व में प्रसाद वितरण का आयोजन किया गया। इसमें मुख्य रूप से उपस्थित थे बड़ाबाजार जिला कांग्रेस के अध्यक्ष एवं पार्षद संतोष पाठक, समाजसेवी प्रकाश जाजोदिया, संजय मजेजी, गंगाधर शर्मा, जोड़ासांकू युवा कांग्रेस के महासचिव गोबिन्द सिंह, संस्था के सचिव विक्रम कठोर, भोला यादव आदि। कार्यक्रम को सफल बनाने में रुप नारायण देरासरी, मंगल जायसवाल, रामबाबू शुक्ला, गणेश सिंह, मनीष कोचर, सुरेश अग्रवाल का मुख्य रूप से योगदान रहा।

सेंट्रल कोलकाता यूथ स्टार क्लब

कोलकाता। मध्य कोलकाता के 48 नं. वार्ड बहूबाजार सोना पट्टी अवस्थित सेंट्रल कोलकाता यूथ स्टार क्लब की ओर से गरीबों, असहाय 100 लोगों के सहायतार्थ नये वस्त्र वितरण कार्यक्रम का आयोजन किया गया। महालया की संध्या पर होने वाले उक्त वस्त्र वितरण कार्यक्रम का उद्देश्य स्थानीय संवेदनशील क्लब कार्यकर्ताओं और सेवाप्रद लोगों द्वारा दुर्गापूजा पर गरीब लोगों के चेहरों में खुशियों के फूल उजागर करना है। क्लब प्रमुख भक्ति प्रसाद गुहा और सचिव रामप्रताप सिंह ने कहा कि क्लब कार्यकर्ताओं के सम्मिलित प्रयास से वे इस कार्यक्रम को पांच वर्षों से करते आ रहे हैं। इस कार्यक्रम में विशेष अतिथि के तौर पर बहुबाजार स्कूल के प्रधानाचार्य, सोमनाथ मतिलाल आदि उपस्थित थे।

मैथिली काव्य संध्या

कोलकाता। मैथिली काव्य संध्या में युवा कवियों ने बढ़ चढ़ कर भाग लिया। मिथिला विकास परिषद के द्वारा आयोजित काव्य संध्या की अध्यक्षता साहित्य अकादमी नई दिल्ली में मैथिली परामर्शदातृ समिति के पूर्व सदस्य अशोक झा ने किया। युवा कवियों में कौशल दास, अपराजिता झा, श्रीमती शैल झा, मो. शौकत अली, हरिवंश झा, नारायण ठाकुर आदि ने मिथिला एवं देश में फैले अराजकता, भ्रष्टाचार जैसे मुद्दों पर सारगर्भित कविता पाठ किया। अशोक झा ने "लहाश टुकुर टुकुर तकैत अछि' और "गांव आब गांव नहिं रहल' कविता प्रस्तुत किया। विनय कुमार प्रतिहस्त ने कार्यक्रम का संचालन किया। झा ने बताया कि युवाओं को प्रोत्साहित करने हेतु दिपावली के पश्चात बिजया एवं दियाबाती मिलन समारोह के अवसर पर कोलकाता में विभिन्न भाषाओं के कवियों को एक मंच पर लाकर सर्वभारतीय कवि सम्मेलन का आयोजन किया जायेगा।


Email us at - jagkalyannews@gmail.com for NEWS/MEMBERSHIP/ADVERTISEMENTS/PHOTOS

इस्कॉन मंदिर मायापुरधाम में दीपदान उत्सव

Radha Madhav Mandir, Mayapur, Nadia, Krishnanagar, West Bengal


मायापुरधाम (जगकल्याण)। इस्कॉन के प्रधान केन्द्र मायापुर चन्द्रोदय मंदिर श्री लक्ष्मी पूर्णिमा की रात सोमवार, 29 अक्टूबर से दीपदान उत्सव प्रारंभ हो रहा है। यह उत्सव बुधवार, 28 नवम्बर रास पूर्णिमा तक चलेगा। उत्सव में भाग लेने के लिए देश-विदेश से श्रद्धालुओं की भारी भीड़ उमड़ रही है। शाम 7 बजे के बाद दीपदान उत्सव प्रारंभ होता है जो 1 घंटा पश्चात रात्रि 8 बजे तक अनवरत चलता है। इस्कॉन के जनसंपर्क अधिकारी महाराज रसिक गौरांग दास ने बताया कि महीने भर चलने वाले इस उत्सव में जाति-धर्म-वर्ण से परे हर कोई दीपदान कर रहे हैं। यह उत्सव सिर्फ मायापुरधाम में ही नहीं बल्कि विश्व भर में स्थित 500 शाखा केन्द्रों में भी यह आयोजन चलता है। इसके साथ ही दामोदराष्टकम्‌ स्रोत पाठ होता है। अंधकार को दूर कर प्रकाश फैलाने वाला यह उत्सव सभी मनुष्यों के मन में प्रकाश लाये, प्रभु से यही प्रार्थना।


Email us at - jagkalyannews@gmail.com for NEWS/MEMBERSHIP/ADVERTISEMENTS/PHOTOS

Friday 26 October 2012

DHARMMARG: DIWALI HINDI SMS-SHUBHKAMNA SANDESH OR PHOTO

DHARMMARG: DIWALI HINDI SMS-SHUBHKAMNA SANDESH OR PHOTO: Hai Roshni ka ye Tyohar, Laye Har Chehre par Muskaan, Sukh aur Samridhi ki Bahaar, Samet lo Saari Khushiyan, Apno ka Saath aur Pyar...

Email us at - jagkalyannews@gmail.com for NEWS/MEMBERSHIP/ADVERTISEMENTS/PHOTOS

Wednesday 17 October 2012

सती माता कैसे बन गई शक्ति?



प्रजापति दक्ष की पुत्री सती को शैलपुत्री भी कहा जाता था और उसे आर्यों की रानी भी कहा जाता था। दक्ष का राज्य हिमालय के कश्मीर इलाके में था। यह देवी ऋषि कश्यप के साथ मिलकर असुरों का संहार करती थी।

मां सती ने एक दिन कैलाशवासी शिव के दर्शन किए और वह उनके प्रेम में पड़ गई। एक तरफ आर्य थे तो दूसरी तरफ अनार्य। लेकिन सती ने प्रजापति दक्ष की इच्छा के विरुद्ध भगवान शिव से विवाह कर लिया। दक्ष इस विवाह से संतुष्ट नहीं थे, क्योंकि सती ने अपनी मर्जी से एक ऐसे व्यक्ति से विवाह किया था जिसकी वेशभूषा और शक्ल दक्ष को कतई पसंद नहीं थी।

दक्ष ने एक विराट यज्ञ का आयोजन किया लेकिन उन्होंने अपने दामाद और पुत्री को यज्ञ में निमंत्रण नहीं भेजा। फिर भी सती अपने पिता के यज्ञ में पहुंच गई। लेकिन दक्ष ने पुत्री के आने पर उपेक्षा का भाव प्रकट किया और शिव के विषय में सती के सामने ही अपमानजनक बातें कही। सती के लिए अपने पति के विषय में अपमानजनक बातें सुनना हृदय विदारक और घोर अपमानजनक था। यह सब वह बर्दाश्त नहीं कर पाई और इस अपमान की कुंठावश उन्होंने वहीं यज्ञ कुंड में कूद कर अपने प्राण त्याग दिए।

सती को दर्द इस बात का भी था कि वह अपने पति के मना करने के बावजूद इस यज्ञ में चली आई थी और अपने दस शक्तिशाली (दस महाविद्या) रूप बताकर-डराकर पति शिव को इस बात के लिए विवश कर दिया था कि उन्हें सती को वहां जाने की आज्ञा देना पड़ी। पति के प्रति खुद के द्वारा किए गया ऐसा व्यवहार और पिता द्वारा पति का किया गया अपमान सती बर्दाश्त नहीं कर पाई और यज्ञ कुंड में कूद गई। बस यहीं से सती के शक्ति बनने की कहानी शुरू होती है। इसके बाद मां के नौ जन्मों की कहानी शुरू होती है।

यह खबर सुनते ही शिव ने वीरभद्र को भेजा, जिसने दक्ष का सिर काट दिया। इसके बाद दुखी होकर सती के शरीर को अपने सिर पर धारण कर शिव ने तांडव नृत्य किया। पृथ्वी समेत तीनों लोकों को व्याकुल देख कर भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र द्वारा सती के शरीर के टुकड़े करने शुरू कर दिए। 

इस तरह सती के शरीर का जो हिस्सा और धारण किए आभूषण जहां-जहां गिरे वहां-वहां शक्तिपीठ अस्तित्व में आ गए। देवी भागवत में 108 शक्तिपीठों का जिक्र है, तो देवी गीता में 72 शक्तिपीठों का जिक्र मिलता है। देवी पुराण में 51 शक्तिपीठों की चर्चा की गई है। वर्तमान में भी 51 शक्तिपीठ ही पाए जाते हैं, लेकिन कुछ शक्तिपीठों का पाकिस्तान, बांग्लादेश और श्रीलंका में होने के कारण उनका अस्तित्व खतरें में है।

सती ही है शक्ति : शक्ति से सृजन होता है और शक्ति से ही विध्वंस। वेद कहते हैं शक्ति से ही यह ब्रह्मांड चलायमान है। ...शरीर या मन में यदि शक्ति नहीं है तो शरीर और मन का क्या उपयोग। शक्ति के बल पर ही हम संसार में विद्यमान हैं। शक्ति ही ब्रह्मांड की ऊर्जा है। 

मां पार्वती को शक्ति भी कहते हैं। वेद, उपनिषद और गीता में शक्ति को प्रकृति कहा गया है। प्रकृति कहने से अर्थ वह प्रकृति नहीं हो जाती। हर मां प्रकृति है। जहां भी सृजन की शक्ति है वहां प्रकृति ही मानी गई है। इसीलिए मां को प्रकृति कहा गया है। प्रकृति में ही जन्म देने की शक्ति है।

अनादिकाल की परंपरा ने मां के रूप और उनके जीवन रहस्य को बहुत ही विरोधाभासिक बना दिया है। वेदों में ब्रह्मांड की शक्ति को चिद् या प्रकृति कहा गया है। गीता में इसे परा कहा गया है। इसी तरह प्रत्येक ग्रंथों में इस शक्ति को अलग-अलग नाम दिया गया है, लेकिन इसका शिव की अर्धांगिनी माता पार्वती से कोई संबंध नहीं।

इस समूचे ब्रह्मांड में व्याप्त है सिद्धियां और शक्तियां। स्वयं हमारे भीतर भी कई तरह की शक्तियां है। ज्ञानशक्ति, इच्छाशक्ति, मन:शक्ति और क्रियाशक्ति आदि। अनंत है शक्तियां। वेद में इसे चित्त शक्ति कहा गया है। जिससे ब्रह्मांड का जन्म होता है। यह शक्ति सभी के भीतर होती है।

शाक्त धर्म का उद्‍येश्य :
शक्ति का संचय करो। शक्ति की उपासना करो। शक्ति ही जीवन है। शक्ति ही धर्म है। शक्ति ही सत्य है। शक्ति ही सर्वत्र व्याप्त है और शक्ति ही हम सभी की आवश्यकता है। बलवान बनो, वीर बनो, निर्भय बनो, स्वतंत्र बनो और शक्तिशाली बनो। तभी तो नाथ और शाक्त सम्प्रदाय के साधक शक्तिमान बनने के लिए तरह-तरह के योग और साधना करते रहते हैं।
Email us at - jagkalyannews@gmail.com for NEWS/MEMBERSHIP/ADVERTISEMENTS/PHOTOS

मां दुर्गा की कहानी


या देवी सर्वभूतेषु चेतनेत्यभिधीयते।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।

कैलाश पर्वत के ध्यानी की अर्धांगिनी मां सती पार्वती को ही शैलपुत्री‍, ब्रह्मचारिणी, चंद्रघंटा, कूष्मांडा, स्कंदमाता, कात्यायिनी, कालरात्रि, महागौरी, सिद्धिदात्री आदि नामों से जाना जाता है। इसके अलावा भी मां के अनेक नाम हैं जैसे दुर्गा, जगदम्बा, अम्बे, शेरांवाली आदि, लेकिन सबमें सुंदर नाम तो 'मां' ही है। 

माता की कथा :
आदि सतयुग के राजा दक्ष की पुत्री पार्वती माता को शक्ति कहा जाता है। यह शक्ति शब्द बिगड़कर 'सती' हो गया। पार्वती नाम इसलिए पड़ा की वह पर्वतराज अर्थात् पर्वतों के राजा की पुत्र थी। राजकुमारी थी। लेकिन वह भस्म रमाने वाले योगी शिव के प्रेम में पड़ गई। शिव के कारण ही उनका नाम शक्ति हो गया। पिता की ‍अनिच्छा से उन्होंने हिमालय के इलाके में ही रहने वाले योगी शिव से विवाह कर लिया।

एक यज्ञ में जब दक्ष ने पार्वती (शक्ति) और शिव को न्यौता नहीं दिया, फिर भी पार्वती शिव के मना करने के बावजूद अपने पिता के यज्ञ में पहुंच गई, लेकिन दक्ष ने शिव के विषय में सती के सामने ही अपमानजनक बातें कही। पार्वती को यह सब बरदाश्त नहीं हुआ और वहीं यज्ञ कुंड में कूद कर अपने प्राण त्याग दिए।

यह खबर सुनते ही शिव ने अपने सेनापति वीरभद्र को भेजा, जिसने दक्ष का सिर काट दिया। इसके बाद दुखी होकर सती के शरीर को अपने सिर पर धारण कर शिव ‍क्रोधित हो धरती पर घूमते रहे। इस दौरान जहां-जहां सती के शरीर के अंग या आभूषण गिरे वहां बाद में शक्तिपीठ निर्मित किए गए। जहां पर जो अंग या आभूषण गिरा उस शक्तिपीठ का नाम वह हो गया। इसका यह मतलब नहीं कि अनेक माताएं हो गई।

माता पर्वती ने ही ‍शुंभ-निशुंभ, महिषासुर आदि राक्षसों का वध किया था।

माता का रूप : 
मां के एक हाथ में तलवार और दूसरे में कमल का फूल है। पितांबर वस्त्र, सिर पर मुकुट, मस्तक पर श्वेत रंग का अर्थचंद्र तिलक और गले में मणियों-मोतियों का हार हैं। शेर हमेशा माता के साथ रहता है।

माता की प्रार्थना : 
जो दिल से पुकार निकले वही प्रार्थना। न मंत्र, न तंत्र और न ही पूजा-पाठ। प्रार्थना ही सत्य है। मां की प्रार्थना या स्तुति के पुराणों में कई श्लोक दिए गए है।

माता का तीर्थ : 
शिव का धाम कैलाश पर्वत है वहीं मानसरोवर के समीप माता का धाम है। जहां दक्षायनी माता का मंदिर बना है। वहीं पर मां साक्षात विराजमान है।

Email us at - jagkalyannews@gmail.com for NEWS/MEMBERSHIP/ADVERTISEMENTS/PHOTOS

Durgaji ki Aarti


जय अम्बे गौरी मैया जय मंगल मूर्ति ।
तुमको निशिदिन ध्यावत हरि ब्रह्मा शिव री ॥टेक॥
मांग सिंदूर बिराजत टीको मृगमद को ।
उज्ज्वल से दोउ नैना चंद्रबदन नीको ॥जय॥
कनक समान कलेवर रक्ताम्बर राजै।
रक्तपुष्प गल माला कंठन पर साजै ॥जय॥ 
केहरि वाहन राजत खड्ग खप्परधारी ।
सुर-नर मुनिजन सेवत तिनके दुःखहारी ॥जय॥
कानन कुण्डल शोभित नासाग्रे मोती ।
कोटिक चंद्र दिवाकर राजत समज्योति ॥जय॥
शुम्भ निशुम्भ बिडारे महिषासुर घाती ।
धूम्र विलोचन नैना निशिदिन मदमाती ॥जय॥
चौंसठ योगिनि मंगल गावैं नृत्य करत भैरू।
बाजत ताल मृदंगा अरू बाजत डमरू ॥जय॥
भुजा चार अति शोभित खड्ग खप्परधारी।
मनवांछित फल पावत सेवत नर नारी ॥जय॥
कंचन थाल विराजत अगर कपूर बाती ।
श्री मालकेतु में राजत कोटि रतन ज्योति ॥जय॥
श्री अम्बेजी की आरती जो कोई नर गावै ।
कहत शिवानंद स्वामी सुख-सम्पत्ति पावै ॥जय॥

Email us at - jagkalyannews@gmail.com for NEWS/MEMBERSHIP/ADVERTISEMENTS/PHOTOS

नवरात्रि पर क्या करें, क्या न करें...

दुर्गा माता के आराधना के नौ दिन

भारतीय शास्त्रों में नौ दिनों तक निर्वहन की जाने वाली परंपराओं का बड़ा महत्व बताया गया है। इन नौ दिनों में कई मान्यताएं और परंपराएं प्रचलित हैं, जिन्हें हमारे बड़े-बुजुर्गों ने हमें सिखाया है। उनका आज भी हम पालन कर रहे हैं। 


हर कोई चाहता है कि देवी की पूजा पूरी श्रद्धा-भक्ति से हो ताकि परिवार में सुख-शांति बनी रहे। आइए जानते हैं, माता के नौ दिनों में क्या करें, क्या न करें :- 

क्या करें :-

* जवारे रखना। 

* प्रतिदिन मंदिर जाना।

* देवी को जल अर्पित करना। 

* नंगे पैर रहना। 

* नौ दिनों तक व्रत रखना। 

* नौ दिनों तक देवी का विशेष श्रृंगार करना। 

* अष्टमी-नवमीं पर विशेष पूजा करना। 

* कन्या भोजन कराना। 

* माता की अखंड ज्योति जलाना।

क्या न करें :-

* दाढ़ी, नाखून व बाल काटना नौ दिन बंद रखें। 

* छौंक या बघार नहीं लगाएं। 

* लहसुन-प्याज का भोजन ना बनाएं।
Email us at - jagkalyannews@gmail.com for NEWS/MEMBERSHIP/ADVERTISEMENTS/PHOTOS

दस महाविद्या : माता पार्वती के दस रूप

कैलाश पर्वत के ध्यानी की अर्धांगिनी मां सती पार्वती को ही शैलपुत्री‍, ब्रह्मचारिणी, चंद्रघंटा, कुष्मांडा, स्कंदमाता, कात्यायिनी, कालरात्रि, महागौरी, सिद्धिदात्री आदि नामों से जाना जाता है।

इसके अलावा भी मां के अनेक नाम हैं जैसे दुर्गा, जगदम्बा, अम्बे, शेरांवाली आदि। इनके दो पुत्र हैं गणेश और कार्तिकेय। यहां प्रस्तुत है माता के दस रूपों का वर्णन।
1. काली, 2. तारा, 3. षोडशी, (त्रिपुरसुंदरी), 4. भुवनेश्वरी, 5. छिन्नमस्ता, 6. त्रिपुरभैरवी, 7. धूमावती, 8. बगलामुखी, 9. मातंगी और 10. कमला।
कहते हैं कि जब सती ने दक्ष के यज्ञ में जाना चाहा तब शिवजी ने वहां जाने से मना किया। इस निषेध पर माता ने क्रोधवश पहले काली शक्ति प्रकट की फिर दसों दिशाओं में दस शक्तियां प्रकट कर अपना प्रभाव दिखलाया, जिस कारण शिव को उन्हें जाने की आज्ञा देने पर मजबूर होना पड़ा। यही दस महाविद्या अर्थात् दस शक्ति है। इनकी उत्पत्ति में मतभेद भी हैं।
अत: माता पर्वती का ध्यान करना और उन्हीं की भक्ति पर कायम रहने वाले के लिए जीवन में कभी शोक और दुख नहीं सहना पड़ता। माता सिर्फ एक ही है, अनेक नहीं यह बात जो जानता है वहीं शिव की शक्ति के ओज मंडल में शामिल हो जाता है।

Email us at - jagkalyannews@gmail.com for NEWS/MEMBERSHIP/ADVERTISEMENTS/PHOTOS

नवरात्रि में सुबह-शाम यह मां वैष्णवी मंत्र बोलें

नवरात्रि में सुबह-शाम यह मां वैष्णवी मंत्र बोल पूरी कर लें हर मुराद

मां वैष्णवी, साक्षात त्रिगुणात्मक महाशक्ति यानी महाकाली, महासरस्वती व महालक्ष्मी स्वरूपा हैं। पौराणिक मान्यताओं में जगतजननी दुर्गा ही दुष्ट शक्तियों व प्रवृत्तियों के रूप में फैले कलह व दु:ख के नाश के लिए ही इस स्वरूप में प्रकट हुई और सत्ववृत्तियों यानी सत्य व धर्म की रक्षा की। त्रिगुण स्वरूपा होने से मां वैष्णवी की उपासना ज्ञान, शक्ति व ऐश्वर्य देने वाली मानी गई है।

यही वजह है कि मां वैष्णवी का दरबार हो या अन्य कोई स्थान या स्थिति माता के लिए श्रद्धा, स्नेह व आस्था से भक्ति तमाम मुसीबतों से छुटकारा व हर मन्नत को जल्द पूरा करने वाली मानी गई है। धार्मिक आस्था है कि माता को हृदय से पुकारने पर भक्त की झोली मनचाही मुरादों से भर जाती है।

शास्त्र कहते हैं कि भगवान के लिए प्रेम जब आत्मा से जुड़ता है तो साधना रूपी शक्ति में बदल जाता है। बस, मां वैष्णवी की भक्ति से भी मिली यही ताकत जिंदगी में सुख-संपन्नता लाने वाली मानी गई है। इसके लिये विशेष मंत्र का स्मरण खासतौर पर नवरात्रि में माता के दरबार, घर या किसी भी मुश्किल हालात में करें तो शुभ फल मिलते हैं। अगली तस्वीरों पर क्लिक कर जानिए माता के स्मरण का ऐसा ही मंत्र और उपासना का सरल उपाय -

नवरात्रि में सुबह-शाम वैष्णवी देवी दरबार या घर में ही मां की तस्वीर की, विशेष लाल पूजा सामग्रियां अर्पण कर पूजा करें। घर में पूजा में माता की तस्वीर लाल चौकी पर विराजित कर विशेष रूप से लाल चंदन, लाल फूल, लाल अक्षत, लाल चुनरी के साथ दूध, हलवा, चने का प्रसाद अर्पित करें व अगली तस्वीर के साथ बताए मंत्र से मां वैष्णवी का स्मरण करें। मंत्र स्मरण कर माता के सामने मनचाही मुराद प्रकट करें, दरबार या तस्वीर के सामने मत्था टेकें। धूप-दीप आरती कर बुरे कर्म व विचारों के लिए क्षमा मांगे व ऐसे कामों से दूर रहने का संकल्प लें।
  • शंङ्खचक्रगदापद्मधारिणीं दु:खदारिणीम्। वैष्णवीं गरुडारूढां भक्तानां भयहारिणीम्।। अनन्यशरणां ज्ञात्वा प्रपद्ये शरणं तव। त्वदेकशरणं मात: त्राहि मां शरणागताम्।।
Email us at - jagkalyannews@gmail.com for NEWS/MEMBERSHIP/ADVERTISEMENTS/PHOTOS

दुर्गासप्तशती के चमत्कारी होने की वजहें




जगतजननी दुर्गा आद्यशक्ति पुकारी जाती हैं। शास्त्रों के मुताबिक आद्यशक्ति जगत के मंगल के लिए कई रूपों में प्रकट हुईं। देवी शक्ति के मुख्य रूप से तीन रूप जगत प्रसिद्ध है - महादुर्गा, महालक्ष्मी और महासरस्वती। वहीं नवदुर्गा, दश महाविद्या के रूप में भी देवी के अद्भुत और चमत्कारिक स्वरूप पूजनीय है। 


देवी उपासना सांसारिक जीवन के सभी दु:ख व कष्टों का नाश कर अपार सुख देने वाली मानी गई है। इन सभी रूपों की उपासना शक्ति साधना के रूप में भी प्रसिद्ध है। इसके लिए अनेक धार्मिक विधान, देवी मंत्र, स्त्रोत व स्तुतियों का बहुत महत्व बताया गया है। 

इसी कड़ी में नवरात्रि में दुर्गासप्तशती का पाठ के जरिए जगतजननी के कई शक्तिस्वरूपों की भक्ति बहुत मंगलकारी और धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष प्रदान करने वाली मानी गई है। यही वजह है कि दुर्गासप्तशती और उसका हर मंत्र चमत्कारिक भी माना जाता है। इसके अलावा तस्वीरों पर क्लिक कर जानिए वे 4 खास वजहें भी, जिनसे दुर्गासप्तशती पाठ का चमत्कारी और मंगलमय प्रभाव होता है- 

  • दुर्गासप्तशती मार्कण्डेय पुराण का अंग है, जो वेदव्यास द्वारा रचित पवित्र पुराणों में एक है। श्रीव्यास भगवान विष्णु के अवतार माने गए हैं।
  • मार्कण्डेय पुराण में दुर्गासप्तशती के रूप में मार्कण्डेय मुनि द्वारा संपूर्ण जगत की रचना व मनुओं के बारे में बताते हुए जगतजननी देवी भगवती की शक्तियों की स्तुति की गई है।
  • इसमें देवी की शक्ति व महिमा उजागर करते सात सौ मंत्रों के शामिल होने से यह सप्तशती नाम से पुकारी जाती है। इसमें देवी की 360 शक्ति स्वरूपों की स्तुति है।
  • दुर्गासप्तशती के मंगलकारी होने के पीछे धार्मिक दर्शन है कि जगतपालक विष्णु द्वारा स्वयं भगवान वेद व्यास के रूप में अवतरित होकर शक्ति रहस्य उजागर किया गया है। दूसरा इसमें शामिल पद्य संस्कृत भाषा में रचे गए हैं। संस्कृत देववाणी कहलाती है। देव कृपा व प्रसन्नता के लिए ही तपोबली महान मुनि और ऋषियों द्वारा इस भाषा का उपयोग कर देव साधनाओं के लिए दुर्गासप्तशती के साथ अन्य देव स्तुतियों और स्त्रोतों की रचना की गई। इसलिए ऋषि-मुनियों की ये स्तुतियां देववाणी के साथ तप के प्रभाव से संकटनाश व अनिष्ट से रक्षा के लिए बहुत असरदार मानी गई है। यही कारण है कि श्री वेदव्यास रचित मार्कण्डेय पुराण व उसमें शामिल दुर्गासप्तशती भी देव शक्तियों और तप के शुभ प्रभाव से भक्त के लिये मंगलकारी तो होती ही है, साथ ही यह हर कामनासिद्धी का अचूक उपाय भी माना गया है।
Email us at - jagkalyannews@gmail.com for NEWS/MEMBERSHIP/ADVERTISEMENTS/PHOTOS

Manav Seva hi Ishwar Seva hai...

Email us at - jagkalyannews@gmail.com for NEWS/MEMBERSHIP/ADVERTISEMENTS/PHOTOS