Saturday 15 December 2012

जगन्नाथ धाम

चार बड़े धामों में से एक

पुरी का जगन्नाथ धाम चार बड़े धामों में से एक है। भगवान जगन्नाथ और उनका रथ महोत्सव मिलन, एकता और अखंडता का प्रतीक है।
उड़ीसा में समुद्र तट पर स्थित पुरी में भगवान जगन्नाथ हिंदुओं के प्रमुख देवता हैं। यहां दर्शन के लिए केवल देश ही नहीं विदेशों से भी काफी संख्या में श्रद्धालु आते हैं। रथयात्रा आषाढ़ महीने के द्वितीया से शुरू होती है जो नौ दिनों तक चलती है। रथयात्रा का शाब्दिक अर्थ होता है, रथ में बैठकर घूमना। यह रथयात्रा पूरे देश में खूब उत्साह और उमंग के साथ मनायी जाती है। भगवान जगन्नाथ और उनका रथ महोत्सव मिलन, एकता और अखंडता का प्रतीक है।

धार्मिक विशेषता 

इस रथ को सजाने के लिए एक महीने से लोग कड़ी मेहनत करते हैं। पुरी के इस उत्सव की सबसे महत्वपूर्ण विशेषता यह है कि इस रथ को सभी जातियों के लोग खींचते हैं। पुरी के राजा गजपति सोने के झाड़ू से रथ के मार्ग को साफ करते हैं। पूजा और अन्य धार्मिक विधियां समाप्त होने के बाद सुबह-सुबह यह रथ धीरे-धीरे आगे बढ़ता है। रथ को विभिन्न रंगों और कपड़ों से सजाया जाता है। उनके अलग-अलग नाम भी रखे जाते हैं। भगवान जगन्नाथ के रथ का नाम है नंदी घोष, जो 45।6 फीट ऊंचा होता है। बलराम के रथ का नाम ताल ध्वज, जो 45 फीट ऊंचा होता है और सुभद्राजी के रथ का नाम दर्प दलन है। वह 44।6 फीट ऊंचा होता है। 
नंदी घोष का रंग लाल और पीला, ताल ध्वज का रंग लाल और हरा तथा दर्प दलन का रंग लाल और नीला रखा जाता है। पुरी में देवी सुभद्रा की पूजा होने पर भी उन्हें हिंदू पुराणों में देवी नहीं माना गया है। भगवान विष्णु के अवतार श्रीकृष्ण या जगन्नाथ और श्रीराम की प्रतिमा को रथ में रखा जाता है। इस रथ को बहुत ही भक्तिभाव से श्रद्धालु खींचते हैं। उसे लक्ष्मीजी, राधिकाजी और सीताजी के मंदिर ले जाया जाता है। 

रथ पर जगन्नाथ, बलराम और बहन सुभद्रा

इस दिन भगवान जगन्नाथ, अपने भाई बलराम और बहन सुभद्रा के साथ तीन अलग-अलग रथों पर सवार होकर पुरी के मार्ग पर नगर यात्रा करने निकलते हैं। अंत में उन्हें जगन्नाथ पुरी के गुड़िया मंदिर ले जाया जाता है। ये तीनों आठ दिनों तक यहां आराम करते हैं और नौवें दिन सुबह पूजा करने के बाद वापस मंदिर में आते हैं। रथयात्रा के पहले दिन सभी रथों को मुख्य मार्ग की तरफ उचित क्रम में रखा जाता है।
उल्टारथ वापस लौटने की यात्रा को उड़िया भाषा में बहुदा यात्रा या उल्टा रथ कहा जाता है, जो सुबह शुरू होकर जगन्नाथ मंदिर के सामने पूरी होती है। श्रीकृष्ण, बलराम और सुभद्रा, तीनों को उनके रथ में स्थापित किया जाता है और एकादशी तक उनकी पूजा होती है। उसके बाद उन्हें अपने-अपने स्थान पर मंदिर में विराजमान किया जाता है।

कला-शिल्प का अद्वितीय नमूना

 जगन्नाथ मंदिर, कला और शिल्प जगत में अद्वितीय नमूना है। यह मंदिर 294 फुट ऊंचा है। यहां हर साल नया रथ बनता है, परंतु भगवान की प्रतिमाएं वही रहती हैं। हर साल तीनों रथ लकड़ियों से बनाए जाते हैं, जिसमें लोहे का बिल्कुल प्रयोग नहीं किया जाता है। 
बसंत पंचमी के दिन लकड़ियां इकट्ठा की जाती है और तीज के दिन रथ बनाना शुरू होता है। रथ यात्रा के थोड़े दिन पहले ही उसका निर्माण कार्य पूरा होता है। यहां प्रति वर्ष नया रथ बनता है परंतु 9 से 19 वर्ष में आषाढ़ माह आने पर तीनों मूर्तियां नई बनाई जाती हैं। इस प्रक्रिया को नव कलेवर या नया शरीर भी कहा जाता है।
 पुरानी प्रतिमाओं को मंदिर के अंदर स्थित कोयली वैकुंठ नामक स्थान में जमीन में दबा दिया जाता है। इस समय किया गया कोई भी शुभ कार्य अत्यंत फलदायक माना जाता है।

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