Tuesday 18 September 2012

पितृपक्ष पर विशेष



प्रति वर्ष आश्विन मास का संपूर्ण कृष्ण पक्ष "श्राद्धपक्ष' अथवा "महालयपक्ष' कहलाता है। इसे "पितृपक्ष' भी कहते हैं। यह पितृपक्ष एक प्रकार से पितरों का सामूहिक मेला होता है। इस पक्ष में सभी पितर पृथ्वीलोक में रहने वाले अपने-अपने सगे-संबंधियों के यहां बिना आह्वान किए भी पहुंचते हैं तथा अपने सगे-संबंधियों द्वारा प्रदान किए "कव्य' से परितृप्त होकर उन्हें अनेकानेक शुभाशीर्वाद प्रदान करते हैं, जिनके फलस्वरूप कव्य प्रदान करने वाले श्राद्धकर्ता अनेकश: सुखोपभोग प्राप्त करते हैं।
 अत: श्राद्ध पक्ष में अपने पितरों की संतुष्टि हेतु तथा अनंत व अक्षय तृप्ति हेतु एवं उनका शुभाशीर्वाद प्राप्त करने हेतु प्रत्येक मनुष्य को अपने पितरों का श्राद्ध अवश्य ही करना चाहिए। जो लोग अपने पूर्वजों अर्थात्‌ पितरों की संपत्ति का उपभोग तो करते हैं, लेकिन उनका श्राद्ध नहीं करते, ऐसे लोग अपने ही पितरों द्वारा शप्त होकर नाना प्रकार के दुखों का भाजन बनते हैं।
जिस मृत पिता के एक से अधिक पुत्र हों और उनमें पिता की धन-संपत्ति का बंटवारा न हुआ हो तथा सभी संयुक्त रूप से एक जगह ही रहते हों तो ऐसी स्थिति में पिता का श्राद्ध आदि पितृकर्म सबसे बड़े पुत्र को ही करना चाहिए। सब भाइयों को अलग-अलग नहीं करना चाहिए। यदि मृत पिता की संपत्ति का बंटवारा हो चुका हो तथा सभी पुत्र अलग-अलग रहते हों तो सभी पुत्रों को अलग-अलग श्राद्ध करना चाहिए। प्रत्येक सनातमधर्मी को अपने पूर्व की तीन पीढ़ियों-पिता, पितामही तथा प्रपितामही के साथ ही अपने नाना तथा नानी का भी श्राद्ध अवश्य करना चाहिए। इनके अतिरिक्त उपाध्याय, गुरु, ससुर, ताऊ, चाचा, मामा, भाई, बहनोई, भतीजा, शिष्य, जामाता, भानजा, फूफा, मौसा, पुत्र, मित्र, विमाता के पिता एवं इनकी पत्नियों का भी श्राद्ध करने का शास्त्रों में निर्देश दिया गया है। इन सभी दिवंगत व्यक्तियों की पुण्यतिथि के दिन ही इनका श्राद्ध करना चाहिए। मृत्युतिथि से तात्पर्य उस तिथि से है जो तिथि अंतिम-श्वास परित्याग के समय विमान हो। उसी तिथि को श्राद्धपक्ष में दोपहर के समय कुतप वेला में (दोपहर के समय साढ़े बारह बजे से एक बजे तक) श्राद्ध करना चाहिए। लेकिन निम्न छह बातों का विशेष ध्यान रखना चाहिए -
1. जिन व्यक्तियों की सामान्य एवं स्वाभाविक मृत्यु चतुर्दशी को हुई हो, उनका श्राद्ध चतुर्दशी तिथि को कदापि नहीं करना चाहिए, बल्कि पितृपक्ष की त्रयोदशी अथवा अमावस्या के दिन उनका श्राद्ध करना चाहिए।
2. जिन व्यक्तियों की अपमृत्यु हुई हो अर्थात्‌ किसी प्रकार की दुर्घटना, सर्पदंश, विष, शस्त्रप्रहार, हत्या, आत्महत्या या अन्य किसी प्रकार से अस्वाभाविक मृत्यु हुई हो, तो उनका श्राद्ध मृत्युतिथि वाले दिन कदापि नहीं करना चाहिए। अपमृत्यु वाले व्यक्तियों का श्राद्ध केवल चतुर्दशी तिथि को ही करना चाहिए, चाहे उनकी मृत्यु किसी भी तिथि को हुई हो।
3. सौभाग्यवती स्त्रियों की अर्थात्‌ पति के जीवित रहते हुए ही मरने वाली सुहागिन स्त्रियों का श्राद्ध भी केवल पितृपक्ष की नवमी तिथि को ही करना चाहिए, चाहे उनकी मृत्यु किसी भी तिथि में हुई हो।
4. संन्यासियों का श्राद्ध केवल पितृपक्ष की द्वादशी को ही किया जाता है, चाहे उनकी मृत्यु किसी भी तिथि को हुई हो।
5. नाना तथा नानी का श्राद्ध भी केवल अश्विन शुक्ल प्रतिपदा को ही करना चाहिए, चाहे उनकी मृत्यु किसी भी तिथि में हुई हो।
6. पूर्णिमा केदिन स्वाभाविक रूप से मरनेवालों का श्राद्ध भाद्रपद शुक्ल पूर्णिमा अथवा आश्विन कृष्ण अमावस्या को करना चाहिए।

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